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Saturday, November 6, 2010

बृहद भरत चरित्र महाकाव्य


चंद्रोदय_
अस्ताचल बिलोक दिनमाना। गोधूली का रूप सुहाना । ।
रंभाती घर आवें गैया । वत्स करें इत मैया मैया। ।
सूर्यदेव अस्ताचल में चला गया। गोधूली का रूप सुहाना लग रहा है। घर को आती हुई गौएँ रंभा रही है। इधर उनके बछड़े मैया-मैया कर रहे हैं।
वत्स बिलोक हरी सब पीरा। प्रफुल्लित धूल सना शरीरा। ।
सिहर सिहर शीतलता आयी। व्योम में चंद्रोदय लखायी। ।
अपने बछड़ों को देखकर गौओं कि सब पीड़ा दूर हो गयी। गौओं का शरीर धूल-मिटटी में सना है। वे बहुत प्रसन्न हैं। उनहोंने धीरे-धीरे शीतलता पायी। निशा होने लगी है और आकाश में चन्द्रमा दीखने लगा है।
इर्द-गिर्द झलकें बहु तारे। सप्त ऋषि शोभित इक कतारे। ।
चन्द्र तरुण विगस पूर्ण आभा। छटा बिखेर सर्व जन लाभा। ।
चन्द्रमा के इर्द-गिर्द बहुत-से तारे झलमला रहे है। सप्त ऋषियों का तारामंडल अति सुशोभित है। चन्द्रमा अपनी तरुणावस्था में है। वह पूर्ण आभा से निकला हुआ है। उसने अपनी छटा चारों ओर बिखेर दी है। सर्वजन उसका आनंद ले रहे हैं।
श्रृंगारमयी रात की रानी। महक रही सुगंधहि सुहानी। ।
साडी हरित व गजरा श्वेता। झूमर सोहि कंगन समेता। ।
रात की रानी अपने श्रृंगार में है। चारों ओर सुहानी सुगंध महक रही है। रात की रानी की हरी साडी और श्वेत गजरा बड़े सुन्दर लग रहे हैं। उसके कंगनों के साथ रात की रानी की झूमर बड़ी सुहावनी लग रही है।
खग कलरव मंद सदन माहीं। लौटे सर्व थके घर ताहीं। ।
विश्राम मग्न सब जन परेरा। एकाध खिन्न जस द्रग सवेरा । ।
घर में चारों ओर पक्षियों का सुन्दर कलरव हो रहा है। वे सब हारे-थके अपने घर लौट आये हैं। सब पशु, पक्षी और मनुष्य अपने विश्राम के लिए प्रसन्न है। कोई एकाध खिन्न दिखाई देता है जैसे उसने सवेरा देख लिया हो।
सर्वजनों को लोकमंगल की ओर से दीपावली की मंगलकामना ।
रचयिता- भगवान सिंह हंस
प्रस्तुतकर्ता- योगेश विकास

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