मंजु ऋषिजी,
भाव के भी भाव बढ़ गए हैं, संवेदनहीन व्यक्ति मशीन है..
आप तो मंत्र और ऋचाएं बोलती हैं। वैसे भी ऋषि ऋचाएं ही बोलते हैं। आपको प्रणाम.. आपकी ये पंक्तियां मन को छूं गईं...
अधिकार ने कहा प्यार से -
जब तू किसी को हो जाता है
वो क्यों मुझको भी पाना चाहता है
जो तेरा मेरा नाता है
क्यों प्रेमी समझ नही पाता है
मुझे (अधिकार) जताकर क्यों पगला
तुझको भी खोता जाता है ?
आप लिखती रहें..मेरी मंगल कामनाएं
मुकेश परमार
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