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Tuesday, November 9, 2010


अच्छे वयंग्य के लिए बहुत बधाई..
ये संवाद बहुत अच्छा लगा-
क्रोध की हवा से भरे गुब्बारे में मैंने चतुराई की कील चुभा दी थी। और अब क्रमशः उसे दयनीयता की हद तक पिचकता हुआ मैं देख रहा था। जैसे किसी खास प्रबल-प्रचंड प्रतिद्वदी की मुझे घोटाले की फाइल मिल गई हो। और वो साष्टांग दंडवत की मुद्रा में आ जाए। इतनी देर तक दरवाजे पर खड़े-खड़े उस दुर्दांत के पैर भारी होने लगे थे। वह लड़खड़ाकर गिरता,इससे पहले ही दूधवाला आ गया। मैंने कहा- भीतर आइए। सांस उखड़ते मरीज़ की धमनियों में मेरी बातचीत का ग्ल्यूकोज दौड़धूप करने लगा था। उसकी सूरत ऐसी हो गई थी जैसे कोई आतंकवादी सरेंडर के लिए रिरिया रहा हो। वह स्वेच्छा से कमरें में सोफा अरेस्ट हो चुका था। मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं। प्रश्न के लाईडिटेक्टर के आगे खड़ा करते हुए मैंने पूछा। वो लड़खड़ाया,बोला- मैं आपसे झगड़ा मोल लेना चाहता हूं। चाय का प्याला उसे थमाते हुए मैंने चाबुक फटकारा- झगड़ा खरीदोगे। अमेरिका हो क्या।. या बिन लादेन। या फिर दाउद हो। इससे नीचे के टिटपुंजिए लोग झगड़ा खरीदते नहीं हैं ,खुद ही झगड़े में खर्च हो जाते हैं। और झगड़ा भी उन्हें खाली पान मसाले के पाउच की तरह मसलकर,कूड़ेदान में फेंक देता है. बाय द वे झगड़ा मोल लेने का आपका बजट क्या है।
डाक्टर मधु चतुर्वेदी

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