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Sunday, November 7, 2010

तर्क और धर्म .................

1 comment:

vishwa mohan tiwari said...

"तथाकथित धर्म के ठेकेदारों के अलग अलग तर्क होंगे"
धर्म के ठेकेदारों के 'तर्क नहीं होते, या तो अंधविश्वास होते हैं‌ या कुतर्क होते हैं।
इसीलिये तर्क को जानना आवश्यक है। तर्क की सीमा होती है । तर्क का उपयोग उसी सीमा तक करना चाहिये, उसके बाद नहीं।
आत्मज्ञान तर्कों से परे है, शब्दों से परे है।
जहां तर्क समाप्त होता है वहीं से ज्ञानमार्ग प्रारंभ होता है। उस प्रस्थान बिन्दु तक पहुँचने के लिये तर्क सहायक हो सकता है, अन्यथा अंविश्वास का खतरा बना रहता है।
तर्क वाला बुद्धिमान बन सकता है, बुद्ध नहीं - बिलकुल सही है। किन्तु बुद्ध बुद्धिमान भी थे ।