आदरणीय नीरवजी ने पंचायत की सनातन परम्परा शीर्षक से सरकार द्वारा थोपा गया पंचायतराज बनाम समाज का पंचनामा एक बुनियादी, मौलिक, सारगर्भित, सटीक एवं करारा व्यंग्य है-- हुक्के और पानी का साथ, न्याय का हाथ। जिसका हुक्का-पानी बंद हुआ उसकी प्यास तो कोई पेप्सी भी नहीं बुझा सकती। पानी खुद प्यासा रहता है इस हुक्के के पानी के लिए। कितनी सतर्क और स्वच्छ व्यवस्था है। जो दुर्लभ को भी सुलभ बना देता है ये पंचायतीराज। क्योंकि उनके लिए मदिरालय और शौचालय भी स्वच्छ पंचायतग्रस्त क्षेत्र है, पञ्च कोई फर्क नहीं मानते । श्री नीरवजी ने इतिहास, महाभारत, चीरहरण, दसानन, दुशासन, दुर्योधन, पञ्चमुखी रुद्राक्ष आदि की मट्टी पलीद करते हुए बताया है कि ये पञ्चपुजारी यानी पञ्च पंचरट्यूब से ज्यादा नहीं है अर्थात सभी की हवा निकली हुई है। अर्वाचीन को लेकर आज के समाज में जो हो रहा है और उसका पंचनामा स्वतः ही भरा जा रहा है। नीरवजी का यह पंचायतराज के जरिए सरकार की सामाजिक व्यवस्थ पर एक अर्थपूर्ण, मौलिक एवं बुनियादी तथा ताबड़-तोड़ व्यंग्य किया है। इसके लिए वे बधाई ही नहीं बल्कि साधुवाद के भी पात्र हैं। पालागन। जय लोकमंगल।
भगवान सिंह हंस
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