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Friday, December 10, 2010


कवी की उलझन
क्या लिखे क्या ना लिखे, तारीफ करे किसकी
बदल गयी है आबो हवा, बदल गयी है बदली

प्रकृति का सौंदर्य छिन गया है, उजड गयी है धरती
धूल में सन गया है गगन, धूमिल हो गयी है वनस्पति

चारों ओर हाहाकार मचा है, लुट गयी है शांति
मानव बन गया है कातिल, नष्ट हो गयी हर बस्ती

कागज के टुकडों की है कीमत, मानवता हो गयी है सस्ती
सब ओर फैला है भ्रष्टाचार, कुरूप हो गयी है सृष्टि

किस पर कविता लिखे कवि, किस पर करे टिप्पणी
किस मन किन नेत्रों से देखे, धूमिल हो गयी है दृष्टि

1 comment:

Anonymous said...

कवि की व्यथा आज के वातावरण के संदर्भ में बिलकुल जायज है। पढ़कर मन झंकृत हुआ। आशा है..मन (मंजू ऋषि)मन से लिखती रहेंगी और हम उनकी कविताओं का इसी प्रकार रसास्वादन करते रहेंगें।

अम्बरीष कुमार गोपाल