"मन " के अल्फाज़ सिर्फ फितरत के लतीफ़ जज्बातों के अफ़साने ही नहीं ,बल्कि कुदरत के सोजो-साज़ पर सदाक़त की रोशनाई से उकेरे तराने हें !
ऐसे तराने जिनमें कायनात के मो"तबर रंग और हयात की तारीख़ की दास्तान है !मन के अफ़कार जब मन -वीणा के तारों की पाकीज़ मोसिकी में ढलते हें, तो रूह का पैकर ऑंखें खोलता है !..और दिलों से बे-साख्ता आवाज़ उभरती है ....
मन के मन की उलझी उलझन
मन को ही सुलझानी होगी !
मंजु ऋषी की लेखनी को मेरे प्रेम !.....................प्रशांत योगी
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