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Tuesday, December 14, 2010

पंडित रामप्रसाद बिस्मिल

आप सब को विदित ही है कि १९दिसंबर पं०रामप्रसाद बिस्मिल का बलिदान दिवस है और सिर्फ बिस्मिल जी ही क्यों काकोरी कांड के लिए शहादत देने वाले ठाकुर रोशनसिंह और राजेंद्र लाहिरी का भी।बिस्मिल जी की कई कविताएं- गज़ले लेकर कई बार आपके आ चुका हूं,आज श्रद्धांजलि स्वरुप बिस्मिल चरित जोकि वस्तुतः उस महापुरुष को प्रणाम करने के लिए ही लिखा गया था ,से बिस्मिल जी कि अतिम रात्रि की मनोदशा को व्यक्त करती कुछ पंक्तियां प्रस्तुत कर रहा हूं------
प्रिवी कौंसिल में भी आखिर खारिज हुए सभी प्रस्ताव
प्रांत-गवर्नर विलियम मौरिस देता नही किसी को भाव
दौरा ज़ज़ ने कहा था- कैदी,लिखकर पश्चाताप करें
महामहिम फांसी की सज़ा को,हो सकता है माफ करें
फांसी के अभियुक्तों ने, पुनः प्रार्थना भिजवायी
लेकिन,फांसी के टलने की,युक्ति नही थी बन पायी
फैज़ाबाद अशफाक पठाये ,रोशन भेजे इलहाबाद
सबके अधरों पर नारे थे, क्रांति रहेगी ज़िंदाबाद
शासन की,समाज की,न्याय की खूब परीच्छा ले ली थी
सारे जीवन संघर्षों की आग राम ने झेली थी
बिना स्वार्थ प्राणों को देश पे,न्योछावर कैसे कर कर दें?
साधनहीन-युवक जन में हम शौर्य-तेज कैसे भर दे?
पंडित रामप्रसाद बिस्मिल ने ,निज जीवन दे बतलाया,
फांसी चढें राष्टृहित कैसे? खुद चढकर के दिखलाया,
ग्यारह वर्ष क्रांति- जीवन में,लिखीं पुस्तकें भी ग्यारह
तन-मन-धन उस मृत्यंजय ने ,भारत के ऊपर वारा
कभी नहीं सेक्यूलर होने का ढोंग रचाया बिस्मिल ने
है अशफाक देश का मुस्लिम ,दिखलाया था बिस्मिल ने
बिसमिल का जीवन जीवन ढोंगों ,पाखंडों का दुशमन था
भारत, भारतीय-हित हेतु, ही उनका सारा चिंतन था
आओ अंतिम रात्रि-प्रहर के ,उनके चिंतन को जानें
आखिर सोच रहे क्या होंगे? कोशिश करके अनुमाने
आओ उधर ही ध्यान दें,उनके वचन पर कान दें
क्या कह रहे? क्या गुन रहे ?शब्द कैसे चुन रहे?
मुझको नहीं संतोष है ,मन मे बहुत आक्रोश है
पुष्प सारे गुच्छ के ,कुछ उच्च से कुछ तुच्छ से
माता पे सब लुटाये हैं, कुछ भी बचा ना पाये हैं
इसका नहीं अफसोस है,किंचित हृदय मे रोष है
कायर नहीं यह देश है ,लेकिन अज़ब परिवेश है
आंख कोई नम नहीं, क्या किसी को गम नही ?
हर तरफ मुर्दा शांति है,या मेरे मन कि भ्रांति है
पर जो हुआ अच्छा हुआ, काम यह सच्चा हुआ
तपस्थली है कोठरी, जपता हूं , हरि-हरि
योग का अभ्यास है, साथ सत्यार्थ प्रकाश है
निज कथा मैं लिख सका,कष्टों मे तप के दिख सका
जो भी किया स्वदेस हित, मैं जिया स्वदेश हित
सच पूंछिए ,मैने नहीं,
उसने नहीं , तैने नहीं
जो भी किया प्रभु ने किया,
मुझमे भी तो प्रभु ही जिया
मन में कोई दुविधा नहीं
कोई असुविधा नही
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मेरे रुधिर की धार से
अरि के अत्याचार से
जन्म लेंगे सैकडों
,प्राण देंगे सैकडों
अन्याय मिट जायेगा
तम हट जायेगा
भारत का भाल चमकेगा
विश्व भर मे दमकेगा
दूर होंगे सारे गम
स्वर्ग में हसेंगे हम
खत्म अपना काम है
सबको राम राम है
सबको राम राम है
---अरविंद पथिक

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