
नए साल की शुभकामनाओं के साथ
मैं श्री विश्वमोहन तिवारीजी और भगवानसिंह हंस को बधाई देती हूं कि आज की गुटबंदी भरे दौर में भी वे अपने किसी साथी की खुलकर प्रशंसा करें। नीरवजी तो सहकारिता की साक्षात मूर्ति हैं। उनके बारे में आप लोगों ने जो लिखा है वह अक्षरशः सत्य है। उनका स्भाव एक अच्छे माली के समान है। जो अपनी पौध को बढ़ता हुआ देखकर खुश होते हैं।
तिवारीजी आपने सहकारिता पर जो शोधपरक लेख लिखा है उसकी किश्तें जारी रखें। फूल को यह नहीं सोचना चाहिए कि उसकी गंध कोई ले रहा है या नहीं। जिसमें पात्रता होती है वह सुगंध तक पहुंच ही जाता है। जो नहीं पहुंच पाते यह उनकी कमी है,फूल की नहीं।
डाक्टर प्रेमलता नीलम
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