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Saturday, December 25, 2010

प्रेम जीवन का प्राकृतिक और सार्वभोमिक सत्य है !

धार्मिक ग्रन्थ और अनुशीलन
             कितने कृष्ण और मोहम्मद तुम्हारे साक्षी रहे हें !कितने ईसामसीह  और नानक तुम्हारे साथ चले हें !कितने महावीर और बुद्ध तुम्हारे जीवन में आये !कितनी गीता और बाइबल तुम्हे स्पर्श करके निकल गईं !कितने वेद -ग्रन्थ और कुराने तुमने पढ़ लीं !.....लेकिन क्या ये महा-पुरुष और धर्म-ग्रन्थ तुम्हारे जीवन का हिस्सा बन सके ?क्या कोई गीता या कुरान  तुम्हारे अंतर्तम में गहरे उतर सकी ? क्या किसी युगद्रष्टा का जीवन तुम्हारी आत्मा का विषय बन सका ?क्या किसी कबीर या लाओत्से की वाणी तुम्हे बदल पाई ?सत्य तो यह है ,की तुम आज भी वहीँ खड़े हो जहां गीता के प्रादुर्भाव से पहले खड़े थे !तुम आज भी वही हो जो किसी ओशो या मीरा  के आने से पहले थे !किसी चैतन्य के आने से तुम्हारी  सोच नहीं बदली !कितने  ही धर्म-ग्रंथों का बोझ लिए तुम जी रहे हो लेकिन धर्म से वंचित हो ! गीता तुम्हारे घर में है ,फिर भी  कोसों की दूरियां हें ! हर रोज़ बाइबल और कुरान के सामने बैठते हो लेकिन क्राइस्ट और मोहम्मद से दूर ही रहते हो ! हजारों की संख्या में बुद्ध की  प्रतिमाएं स्थापित कर लाखों करोडो लोग बोद्ध बन गए लेकिन बुद्ध से वंचित रह गए !लद्दाख में बोद्ध हें ,उन्हें भी अन्य बोद्धों की तरह सिखाया गया है की हिंसा पाप है ! बोद्धों के मेनी-फैस्टो में भी लिखा है कि जिसे तुम पैदा नहीं कर सकते ,उसे मारने का तुम्हे कोई अधिकार नहीं !अतः लद्दाख के बोद्धों ने एक रास्ता खोज लिया ! वो लोग पेशेवर मारने वाले को बुलाने लगे !धर्म का भी पालन  हो गया और खाने को मांस भी मिल गया !बोद्ध धर्म में लिखा भी है कि निरीह जानवरों का बध पाप है लेकिन मरे हुए पशुओं का मांस खाया जा सकता है ! बुद्ध ने एक विकल्प दिया था लेकिन बोद्धों ने उस विकल्प का अप-भ्रंश कर दिया ! यह कोरी आत्म-प्रवंचना है !स्वयंम के साथ धोखा है !आंकड़े बताते हें कि विश्व का कोई भी धर्म इतना मांसाहारी नहीं जितना बोद्ध धर्म है !....हत्या स्वयंम करो या उसका कारण बनो, बात एक ही है ! बुद्ध तो करुणा के पुजारी थे , अगर करुणा नहीं तो बोद्ध होने का कोई अर्थ नहीं रह जाता !
                                किसी भी धर्म का सार्थक मनन ,सात्विक चिंतन और आत्मिक अनुशीलन ही अंततः तुम्हारे धार्मिक होने का कारण बन सकता है !धर्म-ग्रन्थ पढ़ने  के लिए नहीं जीने के लिए होते हैं ! वेदों की ऋचाएं  तभी अर्थवान होंगी जब वो तुम्हारी आत्मा का विषय  बनेंगी ! प्रार्थनाएं तभी फलीभूत होंगी जब वो मात्र याचना न होकर ईश्वर के प्रति आभार होंगी !धर्म-ग्रन्थ आत्मा कि प्यास हैं और प्यास केवल ज़िंदा व्यक्तियों को ही लगती है !मुर्दा लोग केवल शब्दों पर ही ठहर जातें हैं और गीता-वाचक ,बाबा या कोई बापू बन जाते हैं ! गीता में गहरे उतरे तो कुरान और बाइबल को भी गले लगा लोगे !वेदों को जियोगे तो मंदिर-मस्जिद में कोई फर्क न कर पायोगे !बाइबल का आत्मानुशीलन किया तो ईश्वर की झलक अवश्य मिलेगी ,और फिर चाहकर भी किसी कुरान की प्रति नहीं जला पायोगे !कुरान की आयतों को जीवन में उतार पाए तो अल्लाह तक तुम्हारी अज़ान पहुंचेगी ,फिर शायद तुम्हे मस्जिद में भी राम दिखने लगे !
                              धर्म-ग्रंथों का अधूरा ज्ञान ही दो सम्प्रदायों के बीच वैमनस्य का कारण है !तुम पादरियों ,पंडितों और  मुल्लाओं पर रुक जाते हो और ईश्वर से वंचित रह जाते हो !मुसलमान तभी हो अगर अल्लाह की सुनोगे  ,मुल्लाह की सुनोगे तो आदमी भी न बन पायोगे !सभी धर्म-ग्रन्थ इंगित करते हैं ,प्रेम की तरफ ! कोई गुरु-ग्रन्थ-साहब तुम्हे प्रेम से विलग होने की शिक्षा नहीं देते !किसी गीता ,बाइबल या कुरान ने नहीं कहा कि तुम आदमी न रहो ! सभी धर्म-ग्रंथों का गंतव्य एक ही है ,और वो है "प्रेम "!प्रेम जीवन का प्राकृतिक और सार्वभोमिक सत्य है ! अपने जीवन को मेरे प्रेम कहें !     
   प्रशांत  योगी, यथार्थ मेडिटेशन इंटरनेश्नल , धर्मशाला , ( हि. प्र. )  094181 11100

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