. अभिषेक मानवजी आप के लेख को पढ़ कर बहुत आनंद आया इस लेख में आग-ही-आग है जोकि तमाम विद्रूप को ध्वंस करने की ताकत रखता है .सुरेश नीरव
धन्य हो भारत माता ! भगत सिंह और बिस्मिल भी तुम्हीं पैदा करती हो और जयचंद और मीर जाफर को भी तुम्हीं जन्म देती हो. पहले पता चलता था कि कौन जयचंद और मीर जाफर हैं और कौन भगत सिंह और बिस्मिल हैं. अब तो बड़ी ही ह्रदय विदारक स्थिति है माते ! यहाँ तो जयचंद और मीरजाफरों को पद्मश्री दिया जाता है और भगत सिंह और बिस्मिल की रोटी भी छीन ली जाती है. कितने कबीर तेरे आंसूओं को पोंछने में अपना करियर तक दांव पर लगा देते हैं और कितने तो अंग्रजों का पद्मश्री पाने के लिए तेरी अस्मत को नीलाम कर देते हैं.
तू भी क्या कर लेगी. ये तेरे ही बच्चे हैं, तेरी ममता भी इन्हीं को नसीब होती है क्योंकि तू मां हैं न ! इसलिए तू कबीर, भगत सिंह और बिस्मिल को पीड़ा देती है और जयचंद, मीर जाफर, राजदीप, बरखा, प्रभु, वीर, दाऊद, राजा, राडिया, टाटा, रिलायंस, मोदी, अमर, मुलायम, लालू और तमाम राष्ट्रवादी, सांस्कृतिक राष्ट्रवादी, साम्यवादी, समाजवादी, समतामूलकवादी जो वास्तव में सिर्फ पूंजीवादी हैं उन पर अपनी ममता न्योछावर करती है, क्योंकि तुझे लगता है ये सब एक दिन मनुष्य बन जायेंगे और सबको मनुष्य समझेंगे. पर माता ये तुम्हारी भूल है. ये कभी मनुष्य नहीं बन सकते क्योंकि ये सब संतृप्त सूअरों जैसे हो गए हैं और इस कदर कि विक्षिप्त सुकरात को गंवार और बेरोजगार समझते हैं. वास्तव में इनकी गुलामी तू भी झेल रही है नहीं तो जिन देशभक्तों ने इन्हें सम्मानित किया है वही इन्हीं दंड भी देते, मगर क्या किया जाय. अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा जैसी स्थिति आज भी है. दिन का उजाला है और उल्लूओं का शासन है. तू मां है न ! तो इतना कहे देता हूँ कि ये नहीं सुधरेंगे तो हम भी नहीं सुधरेंगे. लेकिन आत्मा तो चीख चीखकर यही कह रही है कि:भष्टाचार की चक्की में / पिस गए सभी विचार मानवता को रौंद दिए सब / मचा है हाहाकार हो मानव
मचा है हाहाकार.
धन्य हो भारत माता ! भगत सिंह और बिस्मिल भी तुम्हीं पैदा करती हो और जयचंद और मीर जाफर को भी तुम्हीं जन्म देती हो. पहले पता चलता था कि कौन जयचंद और मीर जाफर हैं और कौन भगत सिंह और बिस्मिल हैं. अब तो बड़ी ही ह्रदय विदारक स्थिति है माते ! यहाँ तो जयचंद और मीरजाफरों को पद्मश्री दिया जाता है और भगत सिंह और बिस्मिल की रोटी भी छीन ली जाती है. कितने कबीर तेरे आंसूओं को पोंछने में अपना करियर तक दांव पर लगा देते हैं और कितने तो अंग्रजों का पद्मश्री पाने के लिए तेरी अस्मत को नीलाम कर देते हैं.
तू भी क्या कर लेगी. ये तेरे ही बच्चे हैं, तेरी ममता भी इन्हीं को नसीब होती है क्योंकि तू मां हैं न ! इसलिए तू कबीर, भगत सिंह और बिस्मिल को पीड़ा देती है और जयचंद, मीर जाफर, राजदीप, बरखा, प्रभु, वीर, दाऊद, राजा, राडिया, टाटा, रिलायंस, मोदी, अमर, मुलायम, लालू और तमाम राष्ट्रवादी, सांस्कृतिक राष्ट्रवादी, साम्यवादी, समाजवादी, समतामूलकवादी जो वास्तव में सिर्फ पूंजीवादी हैं उन पर अपनी ममता न्योछावर करती है, क्योंकि तुझे लगता है ये सब एक दिन मनुष्य बन जायेंगे और सबको मनुष्य समझेंगे. पर माता ये तुम्हारी भूल है. ये कभी मनुष्य नहीं बन सकते क्योंकि ये सब संतृप्त सूअरों जैसे हो गए हैं और इस कदर कि विक्षिप्त सुकरात को गंवार और बेरोजगार समझते हैं. वास्तव में इनकी गुलामी तू भी झेल रही है नहीं तो जिन देशभक्तों ने इन्हें सम्मानित किया है वही इन्हीं दंड भी देते, मगर क्या किया जाय. अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा जैसी स्थिति आज भी है. दिन का उजाला है और उल्लूओं का शासन है. तू मां है न ! तो इतना कहे देता हूँ कि ये नहीं सुधरेंगे तो हम भी नहीं सुधरेंगे. लेकिन आत्मा तो चीख चीखकर यही कह रही है कि:भष्टाचार की चक्की में / पिस गए सभी विचार मानवता को रौंद दिए सब / मचा है हाहाकार हो मानव
मचा है हाहाकार.
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