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Thursday, January 20, 2011


बी०एल० गौड जी के भतीजे के निधन का समाचार ह्रदयविदारक है।जब तक परिचय नही था तो कुछ फर्क नहि पडता था पर बाबा तुलसीदास के शब्दों मे -------
जो न मित्र दुख होहि दुखारी
ते नर सम पातक नहि भारी
पिछले दिनो शायद कोई बहस चल पडी थी संभवतः मौलिकता लेकर पर मुझे लगता है कि बाबा तुलसीदास भी मौलिक नही हैं पर क्या हममे से कोई भी उन से ज्यादा बडा कवि या स्वाभिमानी है,यदि हां तो ऐसे महामानव की नस्ल को किसी भी तरह बचाने कि जरूरत है।कुल मिलाकर बकौल अकबर इलाहाबादी------------
बहसें फुज़ूल थीं यह हाल खुला देर में
उम्र कट गयी लफ्ज़ों के फेर में
भाई नागेश पांडेय के लोकमंगल पर आने से मुझे वैसी ही खुशी हुई जैसे मायके वालों के बगल मे घर बसाने से होती है
बेहद सुंदर गीत के लिऐ बधाई।मित्रों२०११ का पूरा वर्ष कुछ खास लिख न सका पर २०११ की पहली रचना आपके सामने रख रहा हूं शुरूआत दो क्षणिकाओं से कर रहा हूं-----------
हमारी निकल आयी तोंद
तुम्हारे दांत हो गये कम
मगर एक-एक बात
न तुम भूले ,न हम


आप राम के हो गये
हम रम के
अपने तो सहारे भी हैं
आपसे एक मात्रा कम के

भवानी दादा से लेकर दिनकर जी तक को जीवन की परिभाषा के लिए टटोला जो समझ पाया आपकी अदालत मे रख रहा हूं-------
जीवन
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जीवन को निस्प्रह भाव से
चुकते नही
महज़ बीतते देखने में भी आनंद होता है
किसी ने कहा,
मैं सन्नाटा बुनता हूं
तो किसी के जीवन का अंतिम सत्य सिर्फ
जीवन होता है,
क्या हो सकते थे ?
पर, क्या हो सके? हम
के बीच ही कहीं
निराशा, हताशा,विरक्ति,वैराग्य,हार
और जीत का संतुलन बिंदु होता है
सच पूछिए तो जीवन स्वयं के द्वारा स्वयं के लिए
तय की गयी
शर्तों - सीमाओं के बीच किए गए
कर्म के फल को
भाग्य के अंक से गुणन कर प्राप्त की गयी संख्या का
गुणनफल होता है।
अंत मे नीरवजी के पुनः भारतवासी हो जाने का स्वागत करते हुए मै आदरणिय विश्वमोहन तिवारी जी का धन्यवाद करता हूं कि उन्होने मेरी रचना पर टिप्पणी कर कृतार्थ किया।


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