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Wednesday, January 26, 2011

आईये इन भटके हुए पत्रकारों का मार्गदर्शन करें .


मीडिया यानी देश का चौथा स्तंभ. लोकतंत्र में तीनों स्तंभों की निगरानी की जिम्मेदारी मीडिया पर है. अन्य स्तंभों द्वारा किये जा रहे समस्त कार्यों की सूचना समाज तक पहुंचाना और सामाजिक जागरण के लिए कार्यरत रहना कालान्तर में मीडिया का कार्य था. आज मीडिया एक व्यापार भर है. जिसे सूचनाओं का क्रय विक्रय करना हो उसका इस धंधे में स्वागत है.
सूचनाओं का क्रय विक्रय तो इसका मुख्य आकर्षण है, इसके अलावा भी तमाम कार्य मीडिया द्वारा किये जा रहे हैं. जिसने भी येन-केन-प्रकारेण प्रचुर मात्रा में धन प्राप्त कर लिया है वह इस धंधे में अपनी किस्मत आजमाने में लगा है. व्यापारी और उद्योगपति पहले पैसा लगाते हैं, फिर सरकारों और अधिकारियों को ब्लैकमेल कर खूब सारा पैसा कमाते हैं तथा समाज में जो उनका विरोधी हो उसे भी असामाजिक बना देते हैं.
मीडिया हाउस चलाने वाले लोग आये दिन पुरस्कार प्राप्त करते दिख जाते हैं, पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाएं देने के लिए. कोई भी यह नहीं सोचता कि देश की आजादी के आंदोलन में कलम और कलमकारों ने कैसी भूमिका निभाई थी ! हर कोई भविष्य के सुन्दर सपनों में व्यस्त है, अतीत के उन क्षणों को सभी भूलते जा रहे हैं जिन्हें कभी भी नहीं भूला जाना चाहिए. पहले पत्रकार को सभी सम्मान की दृष्टि से देखते थे. आज वास्तविक पत्रकार समाज से हाशिए पर चले गए हैं. जिनकी आत्मा मिट चुकी है, जिनके कलम की नीब टूट गयी है, जो किसी सत्य के यात्री का शोषण कर सकने में सक्षम हैं वही काफिलासालार बन गए हैं.
दुःख तो तब होता है जब पढ़ी लिखी माताएं-बहनें एम.बी.ए. की पढ़ाई करने के पश्चात नौकरी की तलाश में निकलती हैं. तब मीडिया उनसे विज्ञापन का कार्य कराती है. यदि अखबारों, चैनलों और पत्रिकाओं में विज्ञापन आवश्यक है तो उसकी मार्केटिंग भी किसी महिला द्वारा किया जाना अनिवार्य है. यदि आप इस बाज़ार में ब्रांड हैं तो फिर महिलाओं से विज्ञापन मांगने का कार्य क्यों कराते हैं ? साथ में होता है एक बहुत बड़ा टारगेट जिसके पूरा न होने पर या तो उनका वेतन रोक दिया जाता है अथवा उन महिलाओं के शीर्ष अधिकारी उनका शोषण करते हैं. विज्ञापनदाता यदि प्राइवेट क्षेत्र के हैं तब तो फिर भी गनीमत है. लेकिन सरकारी महकमों में तो इतना बुरा हाल है कि उसको लिखने से पूर्व आत्महत्या करने की इच्छा होती है, क्योंकि इस देश में देशद्रोहियों की ताकत इतनी ज्यादा है जिसकी कोई सीमा नहीं है.
भूख, भय, भ्रष्टाचार देश की मुख्यधारा पर अपना कब्ज़ा जमा चुके हैं. आज प्रत्येक ईमानदार आदमी भयभीत है. चारों स्तंभ एक होकर देश की जनता का शोषण कर रहे हैं. आवाज उठाने वालों के मुंह में भी स्वार्थ, लालच, द्वेष और भय की जाबी लगी हुई है. मनुष्य अल्पसंख्यक हो गए हैं और जिनके पास कोई मनुष्यता नहीं है वह भगत सिंह, गांधी और दीनदयाल उपाध्याय जैसी बातें बोल रहे हैं. सत्य के यात्रियों को रोटी, कपड़ा, सेक्स, सम्मान से वंचित कर उनकी आत्मा को क़त्ल करने का बेजोड़ प्रयास किया जा रहा है जिसमें उन्हें एक बड़ी सफलता भी मिल रही है. नैतिकता, त्याग, समर्पण, इमानदारी और प्रेम भ्रष्टाचारियों के घर झाडू लगा रहे हैं. स्थिति इतनी भयावह है कि समझ में नहीं आता हमारे नौनिहालों का भविष्य क्या होगा ? उनको वैचारिक तौर पर नौकर बनाया जा रहा है.
आम आदमी का बेटा यदि नौकर बन जाए तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है और बड़े आदमी का बेटा बलात्कार या मर्डर कर दे तो वर्षों न्यायालयों को फैसला सुनाने में लग जाता है. आज की राजनीति, न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका या मीडिया का विकल्प तलाशना भी कोई नहीं चाहता और जो चाहते हैं उन्हें इन लोगों से छुप छुप कर सांस लेना पड़ रहा है. हम जानना चाहते हैं कि क्या भारत माता सिर्फ उनकी हैं जो जिसकी पूँजी उसकी भैंस के सिद्धांत पर अमल करते हए देश की मौलिकता का नाश कर रहे हैं; जो इनकी हाँ में हाँ मिलाएगा वह सत्ता का समर्थन पायेगा और जो भारत माता के साथ रहेगा उससे भोजन भी छीन लिया जाएगा. यह कृत्य क्या मर्दानगी है ? क्या ऐसे कृत्यों के जरिये ये छद्म मनुष्य स्वयं को मनुष्य होने का दंभ भरेंगे ?
क्या यही है मीडिया का वास्तविक अर्थ जो आज चलन में है. आज भी यदि चौथे स्तंभ में कार्यरत सिपाही एकजुट होकर आपसी कटुता को भुलाकर, हम बड़ा, हम बड़ा की नीचता से ऊपर उठकर इस समस्या का हल नहीं ढूंढते तो देश हममें से किसी को भी माफ नहीं करेगा. हमारा भी वही भविष्य होगा जो आज जयचंद, मीर जाफर और केन्द्रीय मंत्री सुखराम का है.
आज मीडिया दो टके के लुक्कड़ उद्योगपतियों की जागीर बन गई है. देश की सभी विचारधाराएं इनकी मुख्यधारा का रूप ले चुकी हैं. अन्न, फल और सब्जियां सूखा दी जा रही हैं, लेकिन इंसानों की परिधि से बाहर ! वास्तविकता इतनी घनघोर है कि क्षेत्रीय पत्रकारों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि राजधानी में सिर्फ उन्हीं पत्रकारों को पद्मश्री से नवाजा जा रहा है जो लाबिस्टो की गोद में बैठकर भारत माता का क्रय विक्रय कर रहे हैं, और उन पत्रकारों का दमन हो रहा है जो सच को बुलंद कर रहे हैं, अनैतिकता और अत्याचार से जूझ रहे हैं. जब सत्ता अपनी ताकत के अहंकार में मशगूल होकर इस प्रकार सत्य का दमन करना आरम्भ कर देती है तो सुना हूँ ईश्वर का अवतार होता है परन्तु अब तो समझ में नहीं आता कि ईश्वर ही ईश्वर है अथवा ये पैसे वाले !
आज कोई भी ऐसा समाचार पत्र नहीं है जो अपना कार्य ठीक ढंग से कर पा रहा हो. आज कल न्यूज चैनल टी.आर.पी. बढ़ाने के लिए प्रसिद्द गणिकाओं के कार्यक्रमों और नाच गानों का आयोजन कर रहे हैं, जबकि अखबारों में नंग धरंग तस्वीरों को प्रमुखता दी जा रही है. प्रत्येक समाचार पत्र सत्य से कोसों दूर हैं. इन अखबारों के जरिये जनता में जागृति नहीं विकृति भरी जा रही है. ये अखबार जनता को दिग्भ्रमित करने का कार्य बड़ी इमानदारी और निर्भयता के साथ कर रहे हैं. आइये भारत माता के आंसू पोंछें. इन भटके हुए मीडिया कर्मियों का मार्गदर्शन करें.
- अभिषेक मानव - अभिषेक मानव 9818965667

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