अभिषेक मानवजी आपको बहुत-बहुत बधाई इतना बेहतरीन आलेख संजोने के लिए। मैंने रिझकर पढ़ा। बहुत अच्छा लगा और बड़ा आनंद आया कि विद्रूपताओं से तंग आकर एक दिन सूर्य निकलने से पहले माँ के पैर छूकर कबीर ने अपना गाँव छोड़ दिया और परिवर्तन करने चल दिया। जय लोकमंगल।
भगवान सिंह हंस
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