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Wednesday, January 26, 2011

परिवर्तन करने चला कबीरा


परिवर्तन करने चला कबीरा
जब गांव को राजनीति ने दूषित कर दिया और ग्राम समाज के केन्द्र में प्रेम की जगह द्वेष प्रतिष्ठापित हो गया तो कबीर का जीना कठिन हो गया. कबीर लोगों को समझाने लगे कि द्वेष मत करो, प्रेम करो. इस बात से गांव के सत्ताधारी कबीर से नाराज हो गए. कबीर दोहा लिखते और बच्चों को सुनाते. बच्चे कबीर से प्रेम करते. राजनीतिक लोग जब कबीर को गाली देते तो बच्चे जय-जयकार करने लगते. यह देखकर गांव के बड़े आदमियों में जलन पैदा होने लगी. वो लोग कबीर को बदनाम करने लगे. कोई भी आरोप उन्होंने छोड़ा नहीं. तब घर वालों ने कबीर को विवश कर दिया, घर छोड़ने के लिए. कबीर तो बेरोजगार थे. घर पर खेतीबाड़ी में हाथ बटाते थे तो भोजन मिल जाता था. अब वह भी बंद हो गया तो पड़ोसियों से मांग कर भोजन कर लेते. एक महीने तक तो ठीक था. लेकिन फिर, लोगों की उपेक्षा कबीर को सताने लगी.
कबीर समझते थे कि लोग प्रेम में उन्हें भोजन करा देते हैं. बाद में समझ आया कि लोग तो उनके परिवार को पीड़ित करने के लिए उन्हें भोजन देते हैं. कोई चाचा-चाची, भैया-भाभी, दादा-दादी का प्रेम नहीं है. कबीर अकेले रहने लगे और ईश्वर को याद करके रोने लगे. एक दिन सपने में ईश्वर ने उनका मार्ग दर्शन किया. ईश्वर ने कहा रोयो मत कबीर. गांव छोड़ दो. तुम्हें मैंने किसी और कार्य के लिए भेजा है. तुम राजधानी में जाओ और वहाँ सत्य बोलो. धर्म का प्रचार प्रसार करो. साहित्य सृजन करो. भटकी हुई मानव जाति को एक सूत्र में पिरोकर समाज निर्माण करो. तब तक कबीर की नींद खुल गयी. देखा तो रात का सन्नाटा है, कुत्तों के रोने की आवाज आ रही है. सूर्योदय से पूर्व ही अपनी सो रही मां के पैर छूकर कबीर ने गांव छोड़ दिया.
कबीर राजधानी आ गए. दस पांच दिन इधर उधर घूमने के बाद कबीर ब्लूलाइन की बस में कंडक्टर के पद पर आसीन हो गए. यात्रियों को टिकट देने के पश्चात जो समय मिलता उस बीच कबीर अपने दोहों का सृजन करते और पुराने दोहों को गुनगुनाते रहते. थोड़े ही समय में कबीर ने इक्यावन दोहों की रचना कर डाली. ईश्वर का चमत्कार देखिये. एक दिन बस में बड़ी भीड़ थी, तभी तकरीबन अधेर उम्र की एक देवी का आगमन हुआ. वह कबीर की सीट के पास खड़ी हुई. कबीर ने उन्हें टिकट दिया और अपने दोहों में मग्न हो गए. वह देवी उन्हें ध्यान से सुनने लगी. कबीर का ध्यान जब टूटा तो उन्हें उनके संस्कारों ने विवश कर दिया. महिला के लिए उन्होंने सीट छोड़ दी. दोहों की नवीनता से प्रभावित हो महिला ने कबीर से पूछा, ये किसके दोहे गुनगुना रहे थे आप ? कबीर ने कहा यहाँ मेरा क्या है. जो है सब कुछ उन्हीं का है (ऊपर की तरफ इशारा करते हुए). देवी समझ गयी कि ये इन्हीं के स्वरचित दोहे हैं. महिला ने कबीर से कहा, आप तो साहित्यकार हैं. यहाँ क्या कर रहे हैं ? तो कबीर ने कहा वह जो करा लें (ऊपर की तरफ इशारा करते हुए). महिला ने बताया वह भी लेखन व्यवसाय से ही जुडी हैं. मेरी गाड़ी अचानक खराब हो गयी तो मुझे इस बस में चढ़ना पड़ा.
महिला ने कबीर को अपना विजिटिंग कार्ड पकड़ा दिया और कहा कि कृष्ण पक्ष में मुझे अवश्य फोन कीजियेगा नहीं तो वो आप से नाराज हो जायेंगे (ऊपर की तरफ इशारा करते हुए). उन्होंने ही मुझे भेजा है. कबीर कृष्ण पक्ष आने तक सोचते रहे, कई पत्र-पत्रिकाओं में उनका नाम और फोटो कबीर ने देखा. हालांकि उनकी लेखनी को कबीर ठीक से नहीं समझ पाते थे, फिर भी पढ़ते जरूर थे. कृष्ण पक्ष एक दो दिन बीत जाने के बाद कबीर ने पी.सी.ओ से फोन लगाया, मैडम ने फोन उठाया और बता दिया कि वो पटपड़गंज के किसी फ़्लैट में रहती हैं. फ़्लैट का पता भी दिया और रात्री के 8 बजे मिलने को कहा. कबीर की नियति ने उन्हें नियत समय पर उस देवी के समीप पहुंचा दिया. कबीर का स्वागत बड़ा भव्य हुआ. मैडम ने सिगरेट सुलगाई तो कबीर दंग रह गए. लेकिन जमाने से परिचित थे तो उन्हें कुछ बुरा नहीं लगा. धीरे से मैडम ने एक गिलास पानी में एक दवा मिलाई और कबीर को दे दिया. कबीर पी गए तो मैडम ने अंग्रेजी फिल्म चला दी. अब कबीर तो राबिनहुड हो गए. रात भर भजन कीर्तन हुआ.
सुबह कबीर रोने लगे तो मैडम ने समझा दिया कि यह सब ऊपर वाले की मर्जी से हुआ है. तब जाकर कहीं कबीर शांत हुए. फिर मैडम ने दांव खेला और बोला कि आप अभी तक कितने दोहे लिख चुके हैं ? कबीर ने बोला इक्यावन. मैडम की आँखें चमक गयीं. मैडम ने कहा, कल लाकर दीजिए मैं उनको कई समाचार पत्रों में छपवा दूँगी. तब आपको सब लोग जानेंगे. समाज में परिवर्तन होगा, देश खुशहाल होगा और लोग आप से प्रेम करेंगे. कबीर तैयार हो गए. दूसरे दिन भी शाम को कबीर मैडम के घर पहुँच गए.
दोहे सौंपकर लौटने लगे तो मैडम ने फिर ऑरेंज जूस पिला दिया. फिर हुआ दबाकर भजन कीर्तन. सुबह मैडम ने बताया कि वो एक सप्ताह के लिए शिमला जा रही हैं. कबीर ब्लूलाइन में दोहा गुनगुनाते रहे. चार पांच रोज के बाद कबीर ने अखबार में मैडम की फोटो देखा तो उछल पड़े. पढ़ने लगे तो लिखा था मैडम का दोहा संकलन आया है. कल शाम शहर के पांच सितारा होटल में इसका विमोचन हुआ. कई गणमान्य लोगों ने अपनी अभिव्यक्ति में मैडम को अमर साहित्यकार का दर्जा दिया. कई प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने एक-एक लाख कापियों का आर्डर भी दिया. यह सब पढ़ते-पढ़ते कबीर आनंद में झूमते रहे. तब तक एक सवारी आ गया, कबीर टिकट देने लगे. शाम को कबीर मैडम के घर गए, बिना फोन किये. मैडम ने दरवाजा तो खोला लेकिन कहा कि वो आज व्यस्त हैं. आगे से बिना फोन किये मत आना. तीन दिन बाद कबीर ने फोन किया तो मैडम ने फोन काट दिया. कबीर ने सौ बार फोन किया. सुबह-सुबह फिर कबीर ने फोन किया तो मैडम ने उन्हें बुलाया. कबीर जैसे ही घर में दाखिल हुए तो दो हवालदारों ने उनके कान के नीचे रपट लगाई और लेकर चले गए.
मालेस्टेशन एक्ट में कबीर अंदर हैं. साथ में टाडा भी लगा है. कोई नहीं जानता कि सच्चाई क्या है. कबीर जब अपने साथी कैदियों से कहते कि वह दोहा संकलन उनका है जो देवी जी ने चुरा लिया, तो कैदी उनपर हँसते, फब्तियां कसते. कबीर के बहुत रोने धोने पर एक दिन जेलर ने फोन पर उनकी बात देवी जी से कराई. कबीर ने पूछा ऐसा क्यों किया ? तो देवी जी ने कहा मैंने कहाँ कुछ किया, यह तो सब ऊपर वाले ने किया है. फोन कट गया.
आज के समाचार मे दिया गया है कि मैडम को दोहों के लिए एक बड़ा पुरस्कार दिया गया है. कबीर सोये हुए थे, रात्री के चौथे चरण में ईश्वर ने स्वप्न में कहा कि तैयार हो जाओ, अब तुम्हारा कार्यारम्भ करने का समय आ गया है. अब तुम संसार को समझ चुके हो. तब तक कबीर की नींद खुल गयी. दस बजे जेलर साहेब ने आकर दरवाजा खोला और कहा — कबीर ! आपको रिहा कर दिया गया है. छानबीन करने से पता चला कि आपके ऊपर केवल छेड़खानी करने का आरोप सिद्ध हुआ है. टाडा गलती से लग गया. छूटते ही कबीर ने लिखा:
मानव मानव सब कहें / मानव बने न कोय
सब मानव बन जायें तो / फिर द्वेष कहाँ से होय
यह दोहा गुनगुनाते हुए कबीर यायावर बन गए. मुझसे उनकी मुलाक़ात हुए थी. लेकिन मैं इतना व्यस्त था कि मैं उनकी बात समझ ही नहीं पाया. क्या पता, आप कुछ समझ पाएं !
- अभिषेक मानव 9818965667
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