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Wednesday, January 26, 2011

सबसे निराली शान हिंदुस्तान की


काव्य गोष्ठी 

सबसे निराली शान हिंदुस्तान की 

           शाहजहांपुर / ओज के सुप्रसिद्ध कवि अरविंद पथिक (नयी दिल्ली ) के शाहजहांपुर आगमन पर उनके सम्मान में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता  जनपद के वरिष्ठ कवि  ओम प्रकाश अडिग जी ने की . गोष्ठी का शुभारम्भ निकटवर्ती क्षेत्र जंगबहादुरगंज के व्यंग्यकार श्रीकांत सिंह की सरस्वती वंदना से हुआ  . 
          मूलत: भोपाल  की कवयित्री सरिता वाजपेयी के गीतों का अंदाज ही कुछ अलग था . उनकी इस रचना को श्रोताओं ने खूब सराहा - 


अक्षरों में ज्योति उजली , ध्वनि  किरण दिनमान की है .
तिमिर के पर्वत ढहती चेतना इंसान की है . 
सत्य और सौहार्द की भावना से हम चले , 
विश्व में सबसे निराली शान हिंदुस्तान की है . 
        
         डा. नागेश पांडेय ' संजय ' ने सुनाया - 


यह कैसा बसंत आया है ?
हरी दूब में आग लगा दी !
निंदियारे फूलों की खातिर
उफ्! काँटों की सेज बिछा दी !

       श्रीकांत सिंह के व्यंग्य का रंग ही निराला था -  

हे प्रभु ! 
इस एक अरब की आबादी में
 एक ऐसा छानना बांधिए कि
 जिसमें रह जाएँ चोर-उचक्के , लम्पट- लफंगे , 
बेईमान , घुसखोर , मक्कार और दलाल . 
छन कर आये शुद्ध मॉल .
 प्रभु बोले -
 वत्स . मैं यह भी कर दूँ किंतु
 स्थिति बिगड़ जाएगी . 
एक अरब की आबादी 
बमुश्किल  सौ रह जाएगी . 

     अरविंद पथिक की अनेक रचनाएँ बार- बार सुनी गयीं . सर्जन की प्रक्रिया को  उन्होंने कुछ इस तरह स्पष्ट किया -
दिल्ली की सड़कों सा जीवन , दूषित और जाम रहता है .
 यदा- कदा विशिष्ट  होता है , वैसे तो ये आम होता है . 
चकमा देकर आगे निकलने वाले पैंतरे नहीं सीखें हैं . 
मैंने जो भी गीत लिखे हैं , नाप- तौल कर नहीं लिखें हैं . 

      गीतकार ओम प्रकाश अडिग जी का यह नवगीत सबको सहज भाव विभोर कर गया . 

उपवन बदले या मत बदले , 
फूलों के तेवर बदलें हैं .
स्वर बदलें हैं . 
पत्ती -पत्ती से आवाजें
आती हैं यूँ जीवन वाली .
अब तो हुआ अचंभित होगा 
सुनकर सत्य निरंकुश माली . 
निर्देशों पर उठ जाते जो 
लगते सबके कर बदलें हैं . 

उपवन बदले या मत बदले , 
फूलों के तेवर बदलें हैं .

     गोष्ठी में डा. श्रीकांत मिश्र , डा. एस. के. पांडेय , रूपम , चैतन्य वाजपेयी , सृजन , सृष्टि , अभिषेक शर्मा आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति थी . 

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