काव्य गोष्ठी
सबसे निराली शान हिंदुस्तान की
शाहजहांपुर / ओज के सुप्रसिद्ध कवि अरविंद पथिक (नयी दिल्ली ) के शाहजहांपुर आगमन पर उनके सम्मान में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता जनपद के वरिष्ठ कवि ओम प्रकाश अडिग जी ने की . गोष्ठी का शुभारम्भ निकटवर्ती क्षेत्र जंगबहादुरगंज के व्यंग्यकार श्रीकांत सिंह की सरस्वती वंदना से हुआ .
मूलत: भोपाल की कवयित्री सरिता वाजपेयी के गीतों का अंदाज ही कुछ अलग था . उनकी इस रचना को श्रोताओं ने खूब सराहा -
अक्षरों में ज्योति उजली , ध्वनि किरण दिनमान की है .
तिमिर के पर्वत ढहती चेतना इंसान की है .
सत्य और सौहार्द की भावना से हम चले ,
विश्व में सबसे निराली शान हिंदुस्तान की है .
डा. नागेश पांडेय ' संजय ' ने सुनाया -
यह कैसा बसंत आया है ?
हरी दूब में आग लगा दी !
निंदियारे फूलों की खातिर
उफ्! काँटों की सेज बिछा दी !
श्रीकांत सिंह के व्यंग्य का रंग ही निराला था -
हे प्रभु !
इस एक अरब की आबादी में
एक ऐसा छानना बांधिए कि
जिसमें रह जाएँ चोर-उचक्के , लम्पट- लफंगे ,
बेईमान , घुसखोर , मक्कार और दलाल .
छन कर आये शुद्ध मॉल .
प्रभु बोले -
वत्स . मैं यह भी कर दूँ किंतु
स्थिति बिगड़ जाएगी .
एक अरब की आबादी
बमुश्किल सौ रह जाएगी .
अरविंद पथिक की अनेक रचनाएँ बार- बार सुनी गयीं . सर्जन की प्रक्रिया को उन्होंने कुछ इस तरह स्पष्ट किया -
दिल्ली की सड़कों सा जीवन , दूषित और जाम रहता है .
यदा- कदा विशिष्ट होता है , वैसे तो ये आम होता है .
चकमा देकर आगे निकलने वाले पैंतरे नहीं सीखें हैं .
मैंने जो भी गीत लिखे हैं , नाप- तौल कर नहीं लिखें हैं .
गीतकार ओम प्रकाश अडिग जी का यह नवगीत सबको सहज भाव विभोर कर गया .
उपवन बदले या मत बदले ,
फूलों के तेवर बदलें हैं .
स्वर बदलें हैं .
पत्ती -पत्ती से आवाजें
आती हैं यूँ जीवन वाली .
अब तो हुआ अचंभित होगा
सुनकर सत्य निरंकुश माली .
निर्देशों पर उठ जाते जो
लगते सबके कर बदलें हैं .
उपवन बदले या मत बदले ,
फूलों के तेवर बदलें हैं .
गोष्ठी में डा. श्रीकांत मिश्र , डा. एस. के. पांडेय , रूपम , चैतन्य वाजपेयी , सृजन , सृष्टि , अभिषेक शर्मा आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति थी .
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