मत पूछिये हम किस-किस अंज़ाम से गुज़रे हैं|
है शौक बड़ा ज़ालिम, हम जान से गुज़रे हैं||
इस रूह की नरमी के कुछ सख्त तकाजो से|
ईमान बचाने को, ईमान से गुज़रे हैं||
तब इश्क की दुश्वारी आसान हुई हमको|
बेखौफ़ो खतर जब हर इमकान से गुज़रे हैं||
फूलों पर चलने का, हमको न सलीका था|
लेकिन हम कांटो पर, आराम से गुज़रे हैं||
बैठें हैं ठिकाने पर, हम फिर भी सफ़र पर हैं|
हर राह से गुज़रे हैं, हर धाम से गुज़रे हैं||
ये कैसी खुमारी है जो रूह पे तारी है|
जाने कब सुबह से, कब शाम से गुज़रे हैं||
हम जो भी कह देंगे वह सच हो जायेगा|
हम आज ‘मधू’ ऐसे इलहाम से गुज़रे हैं||
डॉ. मधु चतुर्वेदी
भजन रेस्टोरेंट
गजरौला (जे.पी. नगर)
सम्पर्क सूत्र : ९८३७००३८८८
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