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Wednesday, January 19, 2011

ताज़ा गज़ल


मत पूछिये हम किस-किस अंज़ाम से गुज़रे हैं|

है शौक बड़ा ज़ालिम, हम जान से गुज़रे हैं||

इस रूह की नरमी के कुछ सख्त तकाजो से|

ईमान बचाने को, ईमान से गुज़रे हैं||

तब इश्क की दुश्वारी आसान हुई हमको|

बेखौफ़ो खतर जब हर इमकान से गुज़रे हैं||

फूलों पर चलने का, हमको न सलीका था|

लेकिन हम कांटो पर, आराम से गुज़रे हैं||

बैठें हैं ठिकाने पर, हम फिर भी सफ़र पर हैं|

हर राह से गुज़रे हैं, हर धाम से गुज़रे हैं||

ये कैसी खुमारी है जो रूह पे तारी है|

जाने कब सुबह से, कब शाम से गुज़रे हैं||

हम जो भी कह देंगे वह सच हो जायेगा|

हम आज मधू ऐसे इलहाम से गुज़रे हैं||

डॉ. मधु चतुर्वेदी

भजन रेस्टोरेंट

गजरौला (जे.पी. नगर)

सम्पर्क सूत्र : ९८३७००३८८८

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