प्रिय प्रशांत योगी जी,
आज कई दिन बाद ब्लॉग देखा| ब्लॉग पर पर मेरी अनुपस्थिति के अन्य अनेक कारण हैं| नीरव जी की अनुपस्थिति तो कदापि नहीं- और भी गम हैं ज़माने में लोक मंगल के सिवा| आपकी यह टिप्पणी अत्यंत आपत्तिजनक है – “कलम नीरव है तेरी पल रहे कोई और हैं| आपका साक्षात्कार मेरी कलम से हो चुका है फिर भी इस टिप्पणी में मेरा नाम जोड़ा इसका मुझे अत्यंत खेद है| माना कि नीरव जी कलम के धनी हैं, पर मैं उधार की जिंदगी नहीं जीती| मेरी लेखनी देने में समर्थ है – उसे किसी से लेने की, चाहें वह शब्द धन कुबेर हैं कोई आवश्यकता नहीं है| जिसके पैर गंतव्य की दूरिया नापने की आवश्यकता रखते हैं उसे बैसाखियों की जरुरत नहीं होती|
अत्यंत खिन्न मन के साथ –
. डॉ. मधु चतुर्वेदी
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