
प्रशान्त योगी जी प्रकाण्ड विद्वान हैं, भाषा पर उनका अद्भुत अधिकार है।
मेरा निवेदन है कि वे महत्वपूर्ण शब्दों की परिभाषा भी दें तब उनका उदात्त मन्तव्य बेहतर स्पष्ट हो सकता है।
उदाहरण के लिये 'मौलिक स्वभाव को ही लें, क्या अर्थ है मौलिक स्वभाव का?
"मनुष्य का मौलिक स्वभाव कहीं खो गया है ! कारण -मनुष्य प्रकृति से दूर हो गया है !अपने प्राकृतिक स्वभाव से विमुख हो गया है !जीवन प्राणमय है अगर प्राकृतिक है !प्रकृति ही है जो मनुष्य को मनुष्य होने का बोध कराती है !प्रकृति के साथ सहज भाव से जीने का नाम है मनुष्यता !साक्षी भाव से प्राकृतिक अनुसरण ही जीवन है।"
प्रकृति के साथ सहज भाव से तो जानवर अवश्य जीते हैं। मनुष्य किस तरह से ऐसा कर सकता है?
साक्षीभाव का एक अर्थ तो पंडित नीरव जी ने कर् ही दिया है।
एक उदाहरण और लें -
"मनुष्य को मनुष्य के प्राकृतिक स्वभाव में लोटना होगा !"
क्या है मनुष्य का प्राकृतिक स्वभाव?
सामान्यतया यह समझा जाता है कि'आहार, निद्रा, भय और मैथुन ' उसकी प्रकृति में हैं जैसे पशु की प्रकृति में। मानवीय संस्कार उसमें डालना पड़ते हैं तब जाकर उसमे मानव बनने की संभावना बनती है। इसीलिये हमें पशुपति बनना कहा गया है।
मैं आलोचना नहीं कर रहा हूं, मेरी इतनी क्षमता ही नहीं। मैं तो विनम्रता से अपने भ्रम आपके सम्मुख रख रहा हूं।
प्रेरणा के लिये धन्यवाद
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