Search This Blog

Saturday, January 22, 2011

एक वार फिर दिल आनंदसागर में




आदरणीय नीरवजी के विदेशी यात्रा के दौरान संजोये संस्मरण पढ़कर इतना आनंद मिला कि इतनी जानकारियाँ हाशिल हुई कि इतनी तो वहाँ जाकर भी मिलना दुर्लभ होतीं। भारतीय भोजपात्र की तरह मिश्र में भी आनंदानुभूति हुई। मिश्र की संस्कृति भारतीय संस्कृति के तुल्य है। बहुत सारे इंजीनीयर भारतीय मूल के ही हैं। वहाँ के पिरामिडों तो विश्व में आश्चर्य हैं। हजारों-हजारों साल ममियाँ संग्राहलय में राखी रहती हैं। वहाँ के मृतक शरीरों का किस तरह चीड-फाड़ करके नमक आदि लगाकर ४० दिन तक रखा जाता है और फिर ३० दिन तक उनको सुखाया जाता है। सिगरेटों के ठोंठ किस तरह पड़े रहते हैं। नील नदी में पोलिथीन की सड़ी-गली थैलियाँ गंगा की तरह पड़ी रहती हैं। मिश्र में शाकाहारी भारतीय भोजन भी बड़ा बेहतरीन मिलता है। मिश्र में कुछ हरियाली दिल्ली की तरह नहीं है। प्रवासी भारतीय भारतीय फिल्में खूब देखते हैं। हवाई अड्डे आदि पर हिंदी भी खूब बोली जाती है। भारतीयों से मिलकर मिश्र में लोग बहुत ही ख़ुशी का इजहार करते हैं। नेहरू और नासिर का निर्गुट सम्मलेन बुलाना भी दोनों देशों की मिलती-जुलती संस्कृति का ही दायित्व व योगदान है। इस संज्ञानवर्धक मिश्र की जानकारियों से अवगत कराने के लिए श्री नीरवजी को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ । प्रणाम। जय लोकमंगल।
भगवान सिंह हंस

No comments: