Search This Blog

Saturday, February 5, 2011

आपके गीतों को पढ़ना एक उत्सव है।

आदरणीय बीएल गौड़ साहब
आप गीत मन हैं। गीत आपकी चेतना का शरणागत है। आप के गीत मधुर चांदनी का वह देश हैं जहां लफ्जों के किवाड़ ख्वाबों के घर में खुलते हैं। ख्वाबों के इस घर में ही आकर नींद अपनी आंखें खोलती है। ख्वाब के इस कमरे की खिड़कियां चटख रंग फूलों से बनी हैं। जहां यादों की रंग-बिरंगी तितलियां रक्स करती रहती हैं। एहसास की ईंटों से बना है-मन का मकान। मन के इसी मकान में बैठी पर्दानशीं जिंदगी लम्हों की ऊन से अनुभूति का स्वेटर बुनती रहती है। 
 आपके गीतों को पढ़ना एक उत्सव है।
  क्या पेंटिंग की है आपने शब्दों की तूलिका से-

सारी उमर ढूँढ़ते ताल कहीं जल के
काश कोई लौटा कर लाता बीते पल कल के
नरम हथेली धर मांथे पर कोई जगा गया
पता चला अवचेतन द्वारा चेतन छला गया
आज सवेरे आकर जब कुछ बोल गया कागा
हर आहट पर लगा कि जैसे मनभावन आया

थके थके से अश्व सूर्य के धीरे आज चले
स्वर्णमयी संध्या आ पहुंची घर घर दीप जले
रहा सोचता बैठा बैठा उठ कर कहीं चलूँ
या रत रहूँ प्रतीक्षा में बन दीपक स्वयं जलूं
घिर घिर आई रात अँधेरी चाँद नहीं आया
है यह मेरी नियति कि मैंने सदां शून्य पाया
मेरे प्रणाम स्वीकारें..
पंडित सुरेश नीरव

No comments: