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Saturday, February 19, 2011

दर्शन ही दर्शन







आज मैंने ब्लॉग देखा। अद्भुत दर्शन। मेरा कम्प्यूटर यात्रा से थककर आराम कर रहा था। मैं उससे कुछ बोला नहीं। सोचा, उसको आराम करने दो। आज फिर हम दोनों आमने-सामने हो गए। उसने मुझे तीन महान विभूतियों के दर्शन कराये जिनके दर्शन के लिए मैं काफी समय से भटक रहा था। मैं गदगद हो गया। मेरा अन्तः आनंद से सराबोर हो गया। मैंने उनकी अलग-अलग आलेखित यानी-
शब्दऋषि पंडित सुरेश नीरवजी की दो मार्मिक व्यंग्यात्मक गजलें एवं भोपाल व ग्वालियर की यात्रा-संस्मरण पढ़े। बड़ा आनंद आया।
डा० मधु चतुर्वेदीजी जो एक सुविख्यात कवयित्री हैं, की उल्लू और गधे पर सुन्दर टिप्पणी। बहुत अच्छी लगी।
प्रशांतयोगीजी जो एक यथार्थ प्रेम में अपनी ध्यान समग्रता लगाए रहते हैं की घ्रणा हो ही क्यों। बहुत लगा। लोकों का ध्यान यथार्थ प्रेम की ओर आकर्षित किया। बहुत ही सुन्दर बात है।
एक साथ तीनों के दर्शन हुए। आपको बहुत बधाई। प्रणाम। जय लोकमंगल।
भगवान सिंह हंस







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