सभी ब्लॉग के मित्रो नमस्कार, सलाम, पालागन। आज बहुत दिनों बाद समय मिला है और बहन जी के गाजियाबाद आगमन की खुशी में लाइट भी मेहरबान है, लिहाज़ा आमद दर्ज़ कराते हुए एक ग़ज़ल पेश है।
ग़ज़ब इंसान हूँ मैं ज़िन्दगी के गीत गाता हूँ
भला हो या बुरा मौसम ख़ुशी के गीत गाता हूँ।
जो मिलता है उसे अपना नसीबा मान लेता हूँ
जो खोया है उसे मैं भूल कर भी गीत गाता हूँ।
मुझे हर सांस में उस की कमी महसूस होती है
मैं सब कुछ हार कर भी जीत के ही गीत गाता हूँ।
बदी महसूस करता हूँ भलाई फिर भी करता हूँ
करमफ़रमाँ हर इक लम्हां तुम्हारे गीत गाता हूँ।
ज़मीं हिलती हुई मक़बूल अब महसूस होती है
इसी हिलती ज़मीं पर ज़िन्दगी के गीत गाता हूँ।
मृगेन्द्र मक़बूल
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