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Saturday, February 19, 2011

घ्रणा हो ही क्यों ?
              पाप हो या पापी ,दोनों से ही घ्रणा करना अर्थहीन है ! घ्रणा तुम तभी कर सकते हो जब घ्रणा से भरे हो !द्वेष तभी उपजेगा जब अंतर्तम में प्रेम का अंकुरण न हो !जो अन्दर है वह बाहर अवश्य आएगा ! ह्रदय प्रेम से भरा होगा तो न पापी से घ्रणा कर पायोगे न पाप से ! यह संभव ही नहीं कि जो व्यक्ति पाप से घ्रणा कर रहा है वह पापी से प्रेम कर पाये ! घ्रणा  और प्रेम दोनों एक ही  ह्रदय में साथ साथ  नहीं हो सकते ! घ्रणा की अनुपस्थिति ही प्रेम है ! एक अन्धकार है तो दूसरा प्रकाश ! अँधेरा ,रोशनी के साथ नहीं रह सकता ! सूर्य  के उदय होने पर  रात्रि  को  अस्तित्व हीन होना ही होता है  !अतः मैं कहता हूँ कि यह अवधारणा ही अर्थ-हीन है -" पाप से घ्रणा करो पापी से नहीं !" नीत्शे ने कहा है -" अगर तुम प्रेम और घ्रणा दोनों से भरे हो तो अधूरे हो , न घ्रणा कर पायोगे और न प्रेम के साथ न्याय कर सकोगे !" अपूर्ण व्यक्ति ही पापी से प्रेम और पाप से द्वेष कर सकतें हैं ! पूर्ण व्यक्ति तो कहेगा कि  जब  वह मात्र प्रेम से भरा है तो घ्रणा कहाँ से लाये ! तुम वही दे सकते हो जो तुम्हारे पास है ! जो तुम्हारे पास नहीं ,उसे देने का कोई उपाय नहीं ! अगर पाप से घ्रणा कर रहे हो तो यह तो सत्य है कि ह्रदय के किसी कोने अभी घ्रणा शेष है !
                    सूफी विचार धारा  के संतों की अग्रिम पंक्ति  में बैठने वाली राबिया प्रेम की अतुलनीय मिसाल रही है ! राबिया ने पशु पक्षियों को भी उतना ही प्रेम दिया ,जितना कि ईश्वर को ! एक शाम राबिया  ध्यान मग्न किसी  वृक्ष के नीचे बैठी थी ! उसके काँधे पर एक कबूतर बैठा था और गोद में हिरन का बच्चा सर रखे सोये था !एक शिकारी ने ऐसा अदभुत द्रश्य देखा तो राबिया के पास आकर बैठ गया ! राबिया का ध्यान टूटा तो उसने अपने सामने तीर कमान लिए एक शिकारी को पाया !शिकारी ने विस्मय से पूछा -" जिनके शिकार के लिए मुझे सारे दिन इधर उधर भटकना पड़ता है वो पशु और पक्षी स्वयंम ही आपके आधीन हैं !इन्हें आपसे डर क्यों नहीं लगता ?राबिया मुस्कराई और बोली -"
प्रेम तो पानी की तरह है ,जो खुद अपना रास्ता ढूँढ लेता है ! मैं इन्हें कुछ नहीं दे रही ,मेरे पास कुछ है भी नहीं इनके शरीर की क्षुदा शांत करने के लिए !मात्र प्रेम है जो इन पशु पक्षियों की आत्मा की भूख है ,वही मैं इन्हें दे सकती हूँ ! और सच तो ये है कि मैं जो इन्हें दे रही हूँ ,उससे कहीं ज्यादा मुझे ये लोटा रहें हैं !रहा तुम्हारे प्रश्न का उत्तर ,बस इतना जान लो कि  जीते जी कोई कब्रिस्तान में रहना क्यों चाहेगा ?तुम तो स्वयंम में एक जिन्दा कब्रिस्तान  हो !  शिकारी अपने धनुष वाण फेंक राबिया के चरणों में गिर पड़ा और डबडबाई आँखों से पूछा  -"क्या मैं सचमुच घ्रणा का पात्र  हूँ ?" राबिया ने कहा मेरे पास केवल प्रेम है ! न मैं तुमसे घ्रणा कर सकती हूँ न तुम्हारे कृत्य से !
                  प्रेम की द्रष्टि में पाप होता ही नहीं तो घ्रणा कहाँ से उठेगी !तुम्हारी चेतना अगर प्रेम को समर्पित है तो घ्रणा कहाँ ढूडोगे !प्रेम समग्र चेतना का नाम है जिसमें केवल आनंद होता है !और जब ह्रदय में आनंद होगा तो न पापी होगा न पाप !
               राबिया एक साहूकार के घर में काम करती थी !एक बार क्रोध में साहूकार ने उसके सर पर लोटे से वार कर दिया !लहू-लुहान राबिया अपने माथे से बहते खून को हाथ  से रोकने की कोशिश करती ईश्वर को धन्यवाद दे रही थी -" हे ईश्वर तू कितना महान है , मुझे तूने दुःख दर्द सहने की कितनी शक्ति दी है !" राबिया का कथन  सुन कर साहूकार द्रवित हो उठा और उसने राबिया को आज़ाद कर दिया !प्रेम अखंडित चेतना से उभरता है जिसकी द्रष्टि में पाप कुछ है ही नहीं !ऐसी चेतना जो दर्पण की तरह है ,जिसमें केवल प्रेम प्रतिबिबित होता है !राबिया ने साहूकार से कहा -"में आभारी हूँ उस कृत्य की जिसने मुझे ईश्वर के और भी करीब ला दिया !प्रेम में डूबे व्यक्ति को केवल प्रेम ही नज़र आता है ! ह्रदय में अगर प्रेम के झरने झर रहे हैं तो द्वेष का स्वयंम ही विलोप हो जायेगा ,और द्वेष ही नहीं तो पाप या पापी कैसे जन्मेंगे ! राबिया के मन में साहूकार के प्रति घ्रणा नहीं उपजी ,क्यों कि अंकुरण तो प्रेम का था ! घ्रणा  आती भी तो कैसे !
                                    मुल्ला नसरुद्दीन के घर में इफ्तार की दावत चल रही थी !नसरुद्दीन के मित्र अल्ताफ ने नसरुद्दीन से मांग कर टोपी पहनी हुई थी !मुल्ला को डर था ,कहीं अल्ताफ जाते वक़्त टोपी वापस करना न भूल जाये  !उसके अवचेतन से टोपी नहीं निकल रही थी ! मुल्ला ने अल्ताफ का अपने मित्रों से परिचय कराया -"आपसे मिलिए मेरे अजीज़ दोस्त अल्ताफ ,और जो ये टोपी पहने हें वह मेरी है !"अल्ताफ कुछ सकुचाते हुए मुल्ला को एक कोने में ले जाकर बोला -"ऐसा मत कहो  !"ठीक है मुल्ला ने कहा और इस बार परिचय करते हुए मुल्ला ने बोला -" आप हैं अल्ताफ मेरे दोस्त और जो ये टोपी पहने हैं वो मेरी नहीं है !" अल्ताफ इस बार और भी शर्मिंदा हुआ और धीरे से नसरुद्दीन के कान में बोला -"यार टोपी का ज़िक्र ही मत करो !"पुनः जब कुछ नए मित्र आये तो नसरुद्दीन ने बहुत ही संभलते हुए अल्ताफ का परिचय कराया -" मेरे दोस्त अल्ताफ और ये जो टोपी पहने हैं उसके विषय में कुछ नहीं बोलना !........जो तुम्हारे अवचेतन में है ,उसे रोकने का कोई उपाय नहीं ! जो अन्दर है ,रोकने पर भी बाहर आएगा ! राबिया तो प्रेम से भरी थी ,अतः वह साहूकार और उसके कृत्य दोनों का  आभार प्रकट कर रही थी !
          एक शाम  राबिया बाइबल पड़ती हुई कुछ वाक्यों को रेखांकित कर रही थी !पादरी पहले तो एक सूफी संत के हाथ में बाइबल देखकर खुश हुए फिर शंकित शब्दों में पूछा "राबिया तुम किन शब्दों को रेखांकित कर रही हो ?मैं रेखांकित नहीं बल्कि कुछ कथ्यों  का  पुनरावलेखन रही हूँ ! थोड़ा संशोधन कर रही हूँ ! कुछ धारणाओं और अवधारणाओं का अभ्युथान कर रही हूँ ! इसमें लिखा है पाप से घ्रणा करो ,पापी से नहीं ! मै कहती हूँ घ्रणा हो ही क्यों ?
अपने जीवन को मेरे प्रेम कहें !
प्रशांत योगी ,यथार्थ मेडिटेशन इंटर्नेशनल ,धर्मशाला ( हि.प्र. ) 94188 41999

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