प्रिय पुत्र इशु ,
आज तुमने नीरव जी का बुत बनाकर अपनी सृजनशीलता का परिचय दिया है ।
इश्वर ने तुम्हे कितनी सुंदर आत्मा दी है की तुमने नीरव जी को भी महात्मा का लुक दे दिया .वैसे भी इनके लिए बुत बनाने की क्या ज़रुरत है ये तो बुतों के बीच रहते रहते खुद ही बुत हो गए हैं बेटा .परन्तु तुम्हारी भावना कितनी पवित्र है की तुम हर किसी को अपनी आत्मा की तरह देखते हो .तुम और हम इतने करीब होकर भी कभी आपस में मिल नहीं पाते है क्या करोगे ?तुमको समर्पित मेरी दो पंक्तिया ।
मत करो ऐतबार ,मै तो इक परिंदा हूँ ।
बुतों के बीच में , मै जिंदा हूँ ।।
तुम्हारा बाप
अभिषेक मानव
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