अब आंखों से आंसू ही झरते रहेंगे
था बेहतर उसूलों की चर्चा न करते
अब आंखों से आंसू ही झरते रहेंगे
सभी बंदिशों की उड़ाकर के धज्जी
जो पीते हैं पीकर वो मरते रहेंगे
हे कुर्सी पर काबिज़ मिनिस्टर ये जब तक
गलीचों पे चमचे पसरते रहेंगे
खड़े जो इलैक्शन में हो जाएं शायर
तो ना घाट के और न घर के रहेंगे
आदरणीय पंडित सुरेश नीरवजी
बहुत ही मार्मिक ग़ज़ल आपने कही है। एक-एक शेर लाजवाब है। इन शेरों में हंसी भी है,करुणा भी है और व्यंग्य भी है। बधाई..
हीरालाल पांडेय
1 comment:
bahut khoob bahut khoob.....
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