आज ब्लॉग देखा तो दो शुभ सूचनाएं प्राप्त हुई, बनारस में मिली पं. नीरव को ब्रह्मर्षि की उपाधि एवं मंजु ऋषि के नए काव्य संग्रह के शीघ्र आने की सूचना| मन अत्यंत हर्षित हुआ| वैसे पं. नीरव तो चिरकाल से परम हंस हैं, लोक ने अब उन्हें ब्रह्मर्षि मान लिया तो क्या बड़ी बात है? फिर भी लौकिक व्यवहार हेतु आत्मिक बधाई| बधाई, सुकुमार मंजु ऋषि को भी| मानव का लोकतंत्र में राम पढ़ा – वैसी ही अनुभूति हुई जैसी माँ को अपने बालक की सफलता पर होती है| अरविन्द पथिक की सशक्त रचना (बिस्मिल की जन्म कथा) हेतु साधुवाद! विकास अरोरा की रचना भी प्रसंशनीय है| सूर्य कान्त बाली जी का भारत के नाम विषयक लेख अत्यन्त खोज परक है| साधुवाद!
डॉ. मधु चतुर्वेदी
गीत
पंथी, पथ से परिचय क्या?
बहुत सूक्ष्म पाथेय प्राण का,
अधिक फलों का संचय क्या?
दूर जिसे जाना होता,
वह न राह में थक कर सोता;
पथ की पहचानों में उलझा,
पंथी अपना परिचय खोता|
बढ़ते चरण बने भागीरथ,
लक्ष्य खोज का अभिनय क्या?
पंथी, पथ से परिचय क्या?
कर्मयोग ने रच दी गीता,
हल की रेख, बन गई सीता;
पथ की हर बाधा को साथी,
श्रम की मुस्कानों ने जीता|
आज करो पुरुषार्थ, सार्थ,
कल क्या होगा संशय क्या?
पंथी, पथ से परिचय क्या?
तोड़ निराशाओं के घेरे,
आशा के घर डालो डेरे;
इच्छित रंग भरो जीवन में,
तुम्हीं समय के कुशल चितेरे|
सूर्य कोटिश: दीप्त नयन में,
अंधियारे का फिर भय क्या?
पंथी, पथ से परिचय क्या?
डॉ. मधु चतुर्वेदी
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