
0 आज आदरणीय तिवारीजी का आलेख पढ़ा।
हिंदी को मानते हुए भी अंग्रेजी का अध्ययन किया जाना चाहिए यह तार्किक और व्यावहारिक बात है। हम जितनी अधिक भाषाएं सीखें उतना अच्छा है पर अपनी मातृभाषा की अस्मिता बचाते हुए। यही युग धर्म है।
0 पंडित सुरेश नीरवजी की बात ही कुछ और है-
पंडितजीने पर्यावरणीय सरोकारों पर काफी सारगर्भित भूमिका लिखी है। पढ़कर कविता के भीतर कविता का साक्षात्कार हुआ। यही तो पंडितजी की शैली है। शब्दों के अप्रतिम साधक हैं नीरवजी...
0 अशोक शर्मा की व्यंग्य रचना अच्छी लगी।
0 श्री प्रशांत योगीजी
बहुत दिनों से दिखाई नहीं दे रहे हैं। कहां हैं आजकल..
0 भैया भगवानसिंह हंसजी की रचनाएं और टिप्पणी नियमित पढ़ते रहते हैं।
दिल से लिखते हैं,हंसजी.. अमित हंसजी क्या हंसजी के सुपुत्र हैं। मुझे ऐसा लगा। हो सकता है मेरा अंदाज सही भी हो। उनके मुक्तक भी अच्छे लगे। उन्हें नियमित लिखना चाहिए..
जयलोक मंगल के सभी साथियों को प्रणाम..
डॉक्टर प्रेमलता नीलम
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