
जिस देश में नदियों और वृक्षों की पूजा की परंपरा रही हो, अपने अमृत तुल्य जल से सभी की प्यास बुझाती रही हो आज उसी देश की नदियां प्रदूषण का जहर पी रही हैं और तड़फ-तड़फकर दम तोड़ रही हैं। जंगल जहां कभी पक्षियों का संगीत गूंजा करता था। आज वहां सन्नाटा पसरा हुआ है। और जंगलों के साथ यह सब बदसलूकी भौतिकता के मोहपाश में जकड़ा आदमी कर रहा है जिसपर जंगलों ने हमेशा दुआओँ की बारिश की है।
यह दर्द ही नीरज नैथानी की कविताओं का प्राण तत्व है। महर्षि अरविंद कहते हैं कि प्रकृति सदा संतुलन और तारतम्य की खोज में रहती है। जीवन और पदार्थ भी उसी खोज में हैं जिस तरह मन अपनी अनुभूतियों को सुव्यवस्थित देखना चाहता है। पर्यावरण
प्रकृति का मन है। यह पर्यावरण
ही मन को संचालित करता है। अगर पर्यावरण का मन अशांत है तो हमारा मन कैसे शांत हो सकता है। हमारी अनुभूतियां कैसे इस प्रभाव से अछूती रह सकती हैं।जगदीश परमार
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