श्री मकबूलजी बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर अवतरित हुए हैं. खुशी ये है कि एक बेहतरीन ग़ज़ल के साथ। इसे ही कहते हैं देर आयद दुरुस्त आयद..बदी महसूस करता हूँ भलाई फिर भी करता हूँ
करमफ़रमाँ हर इक लम्हां तुम्हारे गीत गाता हूँ।
ज़मीं हिलती हुई मक़बूल अब महसूस होती है
इसी हिलती ज़मीं पर ज़िन्दगी के गीत गाता हूँ।
मृगेन्द्र मक़बूल
करमफ़रमाँ हर इक लम्हां तुम्हारे गीत गाता हूँ।
ज़मीं हिलती हुई मक़बूल अब महसूस होती है
इसी हिलती ज़मीं पर ज़िन्दगी के गीत गाता हूँ।
मृगेन्द्र मक़बूल
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