यह मंच आपका है आप ही इसकी गरिमा को बनाएंगे। किसी भी विवाद के जिम्मेदार भी आप होंगे, हम नहीं। बहरहाल विवाद की नौबत आने ही न दैं। अपने विचारों को ईमानदारी से आप अपने अपनों तक पहुंचाए और मस्त हो जाएं हमारी यही मंगल कामनाएं...
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Friday, February 4, 2011
अनुभूतियों के अक्ष पर होकर खडे लिखता हूं गीत
लोकमंगल पर इन दिनों खासी चहल पहल दिखाई दे रही है।मंजू श्री को उनके आगामी काव्यसंग्रह के लिए बधाई।चचा जगदीश परमार तो हिंदी साहित्य जगत के लिए धरोहर हैं और उनकी कविताएं आशीर्वाद। नीरवजी को श्रेय है कि ऐसे महान रचनाकार को पुनः न केवल काव्यमंचो पर अपित लोकमंगल से जोडकर बडा काम किया है।मधु जी कि गज़लें हमेशा की तरह शानदार हैं।पर मै उनकी इस बात से सहमत नहीं कि उनके अलावा कुछ नया नहीं।
चलिएएक मुक्तक मै भी कह देता हूं----
अनुभूतियों के अक्ष पर होकर खडे लिखता हूं गीत
हां समय के वक्ष पर होकर खडे लिखता हूं गीत
चुटुकुलों के मानकों से मापने की जुर्रत न कर,,
मैं वेदना के कक्ष मे होकर खडे लिखता हुं गीत
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अरविंद पथिक
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