Search This Blog

Wednesday, March 9, 2011

बृहद भरत चरित्र महाकाव्य


कुछ प्रसंग दर्शनार्थ ----
लखा एक गृध्र विशालकाया। वयोवृद्ध जर्जर वपु साया। ।
द्रग आश्चर्यमय महाभागा। राम लक्ष्मण ने तीर दागा । ।
आगे चलकर उन्होंने एक विशालकाय गिद्ध देखा। वह वयोवृद्ध और जर्जर शरीर है। देखकर राम बड़े आश्चर्यचकित हुए। राम और लक्ष्मण ने तीर दागने लिए धनुष संभाल लिए।
करबद्धहिं एक टांग पर, खडा गृद्ध सध्यान।
पूछू उससे कौन हो, रोक लखन संधान । ।
वह करबद्ध होकर एक टांग पर ध्यानमग्न खडा है। तीर रोककर राम सोचा कि एक बार उससे पूछ लूं, वह कौन हैलक्ष्मण से कहा।
तब वह खग मधुर मधुर भाषा। प्रभु दर्शन की मम अभिलाषा। ।
वत्स! जान मित्र हूँ स्वताता। नाम जटायु व वंश बताता। ।
राम के पूछने पर वह खग मधुर-मधुर बोलता है। आपके दर्शन की मेरी बहुत अभिलाषा थी। वत्स! यह जानो कि मैं आपके पिता का मित्र हूँनाम जटायु है। और मैं अपना वंश बताता हूँ।
कश्यप तिय ताम्रा जग सोही। उसकी सुता शुकी मन मोही । ।
शुकी पुत्री नाता जग माहीं। तासु विनता जन्म भू ताहीं। ।
कश्यप ऋषि की पत्नी ताम्रा जग में बहुत शोभित थी। उसकी पुत्री शुकी मन को मोहित करने वाली हुई। शुकी की पुत्री नाता जग में आयी। और उसकी पुत्री विनता ने प्रथ्वी पर जन्म पाया।
विनता के पुत्र सुहाए। गरुड़ औ , अरुण नाम कहाए। ।
प्रभु! वाही अरुण मेरे टाटा। विदुषी श्येनी है मेरी माता। ।
विनता के दो पुत्र हुए। एक गरुड़ और दूसरा अरुण। प्रभु! वही अरुण मेरे पिता हैं। मेरी माता का नाम श्येनी है जो बड़ी विदुषी है।
रचयिता--भगवान सिंह हंस
प्रस्तुति--योगेश

No comments: