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Saturday, March 5, 2011

बृहद भरत चरित्र महाकाव्य







राज्य करो तुम भरत दुलारे। मम वन शोभित वल्कल धारे ।
भरत!तात ने तुम को भेजा। क्या बदल गया उनका भेजा ।
भरत दुलारे! तुम राज्य करो। मुझे वल्कल धारण करके वन ही शोभित लगता है। भरत! क्या तातश्री ने तुमको यहाँ भेजा है। क्या उनका माथा बदल गया है ।
भरत राम की बात सुन, चीखे असुआ ढ़ार।
याद किया तुमको बहुत , अब नहीं तात हमार।
भरतजी राम की बात सुनकर और आखों से आंसू गिराकर चीख पड़े। भैया राम ! तातश्री ने तुमको बहुत याद किया था । अब हमारे तात नहीं रहे।
रचनाकार -- सिंह हंस
प्रस्तुति -अमित विकास हंस

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