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Wednesday, March 23, 2011

सृजन का अदभुत रागः विश्वमोहन तिवारी


व्यक्तित्व-
सृजन का अदभुत रागः विश्वमोहन तिवारी
पंडित सुरेश नीरव
 कुछ लोग सृष्टि शून्य रचनाएं करते हैं और कुछ लोग शून्य से सृष्टि की रचना कर देते हैं। किसी भी रचनाकार को दैवीय आयोजना से ही यह योग प्राप्त होता है। या फिर गहरे संस्कार और दीर्घ अभ्यास से। विश्वमोहन तिवारी भी इन्हीं विलक्षण रचनाकारों की श्रेणी के अधिगत विद्वान,प्रज्ञ,प्रणेता और प्रतिभावंत हैं। इनकी प्रतिभा में अप्रतिम पवित्रता है। चालाकी और प्रपंच-पटुता कतई नहीं। अपने जीवन के 76 वसंत देख चुके आदरेय विश्वमोहन तिवारी के उत्साह की अकंप दीप्ति-प्रदीप्ति को वक्त की हवाएं भी प्रकंपित नहीं कर सकी हैं। साहित्य  के ऋद्धि-सिद्धि वाले सारस्वत अनुष्ठान की वृद्धि के लिए जिस अभंग गति से ये चारु-चेष्टाएं कर रहे हैं, उन चेष्टाओं के प्रति मेरे अकुंठ अंतस में एक सात्विक श्रद्धा का भाव है। जबलपुर यूं भी सृजन का एक जाग्रत-जीवंत शक्ति पीठ है। एक-से-एक विलक्षण प्रतिभाओं की दिव्य लीला भूमि है- जबलपुर। सृजन की संस्कारधानी जबलपुर। जबलपुर के गढ़ा फाटक मुहल्ले में 26 फरवरी,1935 को विश्वमोहन तिवारी
 का जन्म हुआ। इंजीनियरिंग कितने ही लोग करते हैं मगर विश्वमोहन तिवारी
 ने विश्व को नहीं अंतरिक्ष को अपनी इंजीनियरिंग की कार्यशाला बनाया। और एअरफोर्स के जरिए अपने विचार को व्यवहार का आकार देने लगे। आकाश मन की ऊंचाइयों के सापेक्ष था। जब तक ऊंची न हो जमीर की लौ,आंख को रोशनी नहीं मिलती। फिराक साहब का यह अदभुत सत्य ही विश्वमोहन तिवारीजी का जीवन-यथार्थ बन गया। बड़े करीने से जमीर की लौ को भी ऊंचा रखा और आंखों को भी सुबह के नर्म उजालों से नहलाए रखा। मास्को,स्वीडन,डेनमार्क,ब्रिटेन,वेल्जीयम,फ्रांस,हालैंड,जर्मनी,आस्ट्रीया,इटली,स्विटजरलैंड,यू.एस.ए. और कांगो....बाहर जीतना लंबा सफर है,भीतर उतनी ही बड़ी यात्रा है-सृजन की,...अनुभूतियों की। सर्वशास्त्र समालोकी व्यष्टि और दृष्टि से संपन्न विश्वमोहन तिवारी
 के लिए विज्ञान,अध्यात्म,चित्रांकन और शब्द सभी ज्ञान के विराट वांड्ग्मय का ही अंश हैं। और सभी में अभिव्यक्ति की पाणिनी-सूत्रता आपको सिद्ध है। तिवारीजी का रचना संसार बहुआयामी है। वे बोधिवृक्ष के नीचे बैठकर आनंद पक्षी निहारन का लुत्फ उठाते हैं तो दूसरे ही क्षण एक गौरैया का गिरना देखकर व्यथित भी हो जाते हैं। और खुद ही फिर मन के दर्पण को यह कहकर दुलराते भी हैं कि मत रो एकाकी मन दर्पण। और फिर कहते हैं कि सुनो मनु यह सृष्टि है ही रहस्यमय संसार। ऐसी किरणों का रहस्यमय संसार जहां होती हैं सफेद रातें और काले दिन। विश्वमोहन तिवारी का मानना है कि इस उपग्रह के बाहर-भीतर हम सभी एक तरह से बेघर हैं। हम सब महज छवियां-ही-छवियां हैं। कहीं विज्ञान का आनंद उठातीं छवियां कहीं हिंदी यात्रा साहित्य का इतिहास सुनातीं छवियां। तो कभी वैदिक गणित के जरिए ज़िंदगी कै गूढ़ रहस्यों का रहस्यमयी उत्तर तलाशती छवियां। मगर फिर भी सिर उठाए खड़ा रहता है एक सनातन प्रश्न कि सबसे बलवान कौन। विश्वमोहन तिवारी का रचना-विश्व बड़ा ही विश्वसनीय और विश्वस्त है। पुराणों के अनुसार विश्व दस देवों का समूह है- वसु,सत्य,ऋतुर्दक्ष,काम,कामोधृति,पुरु,पुरुरवा, विश्वेदेव,प्रकीर्ति और मादृवाश्च। इन दस-दस देवों के देवत्व से मंडित तथागत व्यक्तित्व के अक्षुण्ण चिंतन का खनन-उत्खनन। जिसमें महकते हैं सर्जना के असंख्य तुलसी-क्षण। सृजन में एक सैनिक का अनुशासन,हिंदी की हार्दिकता,अंग्रेजी की आधुनिकता और अध्यात्म के अनंत भूमाकाश के चतुरंगी और चातुर्दिक वैशिष्टय के रसायन से उपजी कृतिवृक्ष चेतना विश्वमोहन तिवारी के लेखन में अरुणोदय की तरह उतरती है। वैष्णव ताजगी से लवरेज। महर्षि अरविंद के शब्दों में- जीवन में निरंतर ताज़गी और अटूट दिलचस्पी तभी उपलब्ध होती है जब भीतर निरंतर विकास होता रहे। आज के बाजारवादी दौर में कितने लोग यह मानेंगे कि कभी अतिथियों का स्वागत मनुष्य ही नहीं हीरामन तोता भी मंत्रों के स्वस्तिवाचन से किया करता था। लगता है कि शहर के जबड़ों में लापता होते जंगलों का यह गुमशुदा हीरामन तोता आज विश्वमोहन तिवारी की चेतना में शरणागत होकर बच्चों के कानों में संस्कृति के अर्थवान गीत गुंजा रहा है। और मनुष्यता से लगातार बेदखल होती आदमियत को मोहनी मनुहार से टेर रहा है,वापस परिधि से केन्द्र की ओर आने के लिए। सृजन का अदभुत राग हैं श्री विश्वमोहन तिवारी। जिसमें प्रगति और परंपरा की जुगलबंदी एक साथ लरजती है। वो लोग और हैं जो इसलिए बड़े माने जाते हैं क्योंकि वे बड़े समाज में रहते हैं। विश्वमोहन तिवारीजी तो इसलिए बड़े हैं क्योंकि एक बहुत बड़ा समाज इनके भीतर रहता है। एक भरापूरा वैश्विक समाज। जो इनकी सनातन-चिरंजीविता को ध्रुवनिश्चित करता है। सोच के इस अनंत-अक्षुण्ण स्रोत को मेरे विनय-विनीत नमन।
आई-204,गोविंदपुरम,ग़ाज़ियाबाद-201001



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