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Sunday, March 13, 2011



पंडित सुरेश नीरव जी
आपको मेरा अनिता गोयल पर लेख अच्छा और प्रेरणादायक
लगा और आपके ह्रदय की पी.डा, जो सभी देश प्रेमियों की भी पी.डा है, मुखर हो आई, मेरा उत्साह वर्धन हुआ है..

मुझे लगता है, संभवता: मैं गलत हुं, की जब तक हम डार्विन का सिद्धांत नहीं समझते हमारी सोच का आधुनिक होना पूरा नाहीं हो सकता॥ अत: निचे एक लेख संलग्न है॥ यदि पाठकों को पसंद नहीं आए तब उनसे निवेदन है कि वे स्पष्ट लिखें ताकि मैं भविष्य मैं उन्हें यह कष्ट न दूँ..

आनुवंशिकी का लामार्क सिद्धान्त तो खारिज कर दिया गया था और डार्विन के सिद्धान्त को पूरी‌ मान्यता मिल गई थी। लामार्क का सिद्धान्त कहता है कि संतति में वे गुण भी आते हैं जो माता पिता ने अपने जीवन में‌ अर्जित किये हैं। जैसे कि सशक्त माता पिता के बच्चे सशक्त होंगे । यह सतही तौर पर ठीक लग सकता है, किन्तु थोड़े से अवलोकन से इसकी गलती स्पष्ट हो जाती है, क्योंकि ऐसा हमेशा नहीं देखा जाता । इसको यदि और सोचा जाए तो अंधे का बच्चा अंधा होना चाहिये, क्योंकि अन्धपन भी तो एक गुण हो सकता है, जो कि माता या पिता के जीवन में हुआ हो, और उऩ्हें आनुवंशिकता में न मिला हो ।


डार्विन का सिद्धान्त कहता है कि कुछ गुण ही आनुवंशिक होते हैं और वे माता तथा पिता के गुणों में से मिलकर आते हैं। आज की भाषा में डी एन ए इन गुणों का वाहक होता है। और जो गुण जाते हैं वे माता पिता के डी एन ए के ही गुण होते हैं, जो पर्यावरण या माता पिता के अर्जित गुणों पर निर्भर नहीं करते।


अनीता गोयल के अनुसंधानों के बाद ( देखिये मेरा ताजा लेख) एक तरह से अब सूक्ष्म स्तर पर लामार्क का सिद्धान्त सही दिख रहा है। उऩ्होंने दर्शाया है कि आनुवंशिक गुण न केवल डी एन ए पर निर्भर करते हैं, वरन डी एन ए के आण्विक पर्यावरणीय परिवेश अर्थात आण्विक स्तर पर तापक्रम, दबाव, डी एन ए पर यांत्रिक तनाव, तथा अन्य जैविक सामग्रियों पर भी निर्भर करते हैं। इस पर्यावरणीय परिवेश का प्रभाव डी एन ए के अपना कोड पढ़ने और लिखने पर पड़ सकता है जो कि उसमें‌ ऐसा उत्परिवर्तन कर सकता है, जो मूल डी एन ए में नहीं था।


इसका एक प्रभाव तो यह दिख रहा हि कि वातावरण, चाहे आण्विक स्तर पर ही सही, भी आनुवंशिकता पर प्रभाव डालता या डाल सकता है। लामार्क भी तो ऐसा ही कुछ कह रहे थे। यह तो ठीक है कि हम या वातावरण आण्विक वातावरण पर नियंत्रण या बदलाव कर सकें और डी एन ए में मनचाहा या अनचाहा उत्परिवर्तन पैदा कर सकें, किन्तु इससे लामार्क का सिद्धान्त तो सही नहीं हो जाता, यद्यपि कुछ विद्वान ऐसा सोच रहे हैं। क्योंकि जो नए गुण अब आण्विक पर्यावरण डाल रहा है, उऩ्हें माता पिता ने अर्जित नहीं किया था। हां यह भी ठीक है कि वे गुण माता पिता के ( आण्विक पर्यावरण ) द्वारा दिये जा रहे हैं जो उनके मूल डी एन ए में वे नहीं थे। तब भी लामार्क सिद्धान्त आण्विक स्तर पर सही नहीं कहा जा सकता।


इन प्रक्रियाओं में क्वाण्टम भौतिकी उच्चावचन (फ़्लक्चुएशन्स) हिस्सा ले सकते हैं, इसकी संभावना सबसे पहले अर्विन स्रोडिन्जर ने अभिव्यक्त की थी। और अब मैकफ़ादैन और अल खलीली ने भी इस प्रक्रिया को दर्शाया है। अर्थात क्वाण्टम रव (नौएज़) या उच्चावचन डी एन ए के पाठ या लेखन में गलतियां डाल सकता है। विज्ञान की नैनोबायोभौतिकी की नई शाखा अब एक और नई शाखा क्वाण्टमजैव विज्ञान को जन्म दे रही‌ है।


विज्ञान का यह क्षेत्र एकदम नया है और अद्भुत रहस्य से भरा पड़ा है, इसके परिणाम भी मह्त्वपूर्ण हैं। अत: यह क्षेत्र विज्ञान कथाकारों के लिये बहुत ही उपजाऊ सिद्ध हो सकता है।


क्या कोई कथाकार इसे पढ़ रहा है॥ क्या यह उन्हें इस विषय पर और ज्ञान प्राप्त करने या कहानी लिखने की प्रेरणा दे रहाहै??



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