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Saturday, March 26, 2011

नित्यानंद तुषार की ग़ज़ल

नित्यानंद तुषार जयलोकमंगल के सक्रिय सदस्य हैं। पेश है यहां उनकी एक ताज़ा  ग़ज़ल
उसके होंठों पर रही जो, वो हँसी अच्छी लगी
उससे जब नज़रें मिलीं थीं वो घड़ी अच्छी लगी

उसने जब हँसते हुए मुझसे कहा` तुम हो मेरे `
दिन गुलाबी हो गए ,ये ज़िन्दगी अच्छी लगी
...
पूछते हैं लोग मुझसे , उसमें ऐसा क्या है ख़ास
सच बताऊँ मुझको उसकी सादगी अच्छी लगी

कंपकंपाती उँगलियों से ख़त लिखा उसने `तुषार`।

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