आदरणीय नीरव जी ,
सादर पालागन ,
जापान की त्रासदी ने सारे विश्व को झकझोर कर रख दिया है
प्रदूषण ने भूकंप ,सुनामी ,ज्वालामुखी विस्फोट आदि को जन्म
दिया है मुझे इससमय आपके सञ्चालन में आकाशवाणी के
राष्ट्रीय चेनल पर पढी अपनी कविता की पंक्तिया याद आ रही है
प्रस्तुत कर रहा हूँ शायद सभी को सामयिक लंगेगी !
सूरज से टूट कर दूर हुई पृथ्वी
सूरज का चक्कर काटा
घुमते -घुमते अपनी धुरी पर
अपने ताप को छाटा
जीवन की रचना हुई
मानव की संरचना हुई
उपजी वनस्पति
उपजे जीव-जंतु
उपजे जलचर -थलचर
नभचर ,उड़न्तु
जल बना -थल बना
पर्वत बने -सागर बना
जीवन चक्र पूरा करे ,
जंगल -महासागर बना
अस्त्र बने ,शस्त्र बने ,
पहनने को वस्त्र बने
साईकल चली ,रिक्शा चली ,
कार चली ,बस चली ,
ट्रक -रेलगाड़ी चली ,
जनता को ढोने को
सडको पर लारी चली
मानव-विकास हेतु ,
वृक्षों पर आरी चली
पेड़ कटे -पौधे कटे ,
खेत और जंगल घटे ,
कुँए घटे -ताल घटे ,
बर्फ के पहाड़ घटे ,
झरने घटे -झील घटी ,
नदीयो में नीर घटी ,
बादल घटे -वर्षा घटी
घटी आक्सीजन
धूल बढी-धुँआ बढ़ा ,
धरती का ताप बढा ,
कंक्रीट के जंगल बढे ,
बढ़ गया प्रदूष्ण !
भूमंडलीय ताप बढा ,
मानव का संताप बढा ,
कार्बन डाई आक्साईड बढ़ी ,
नाईट्रोजन ,सल्फाईड बढ़ी ,
प्रदुषित कचरा बढा ,
जीवन को खतरा बढा !
सुनामी -कैटरिना
करने लगी तांडव ,
लैला की लहरों मे
बहने लगा मानव !
पृथ्वी कराह उठी
सिहर उठा जीवन !
आओ ,सब मिल पृथ्वी को
प्रदूषण से बचाये,
वृक्षारोपण करे ,
और हरा -भरा बनाये !
ग्लोबल वार्मिंग के
संकट को घटाये,
पोलीथिन नष्ट करे ,
पोलुशन घटाये !
वायुमंडल मे
आक्सीजन बढ़ाये
पृथ्वी को फिरसे ,
आग का गोला
बनने से बचाये !
रजनी कान्त राजू
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