माना काफ़ी सुन्दर हो ,तुममें अदभुत आकर्षण है
जितना चाहे होली खेलो तुमको खुला निमंत्रण है
मेरे मन के अन्दर पावन गंगा क़ा जल बहता है
टूट नहीं सकता जो तुमसे संयम क़ा वो दर्पण है
जी भर कर तुम कोशिश कर लो विचलित ना कर पाओगी
तन के, मन के भावों पर भी अपना पूर्ण नियंत्रण है - -
जितना चाहे होली खेलो तुमको खुला निमंत्रण है
मेरे मन के अन्दर पावन गंगा क़ा जल बहता है
टूट नहीं सकता जो तुमसे संयम क़ा वो दर्पण है
जी भर कर तुम कोशिश कर लो विचलित ना कर पाओगी
तन के, मन के भावों पर भी अपना पूर्ण नियंत्रण है - -
नित्यानंद तुषार
No comments:
Post a Comment