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Tuesday, March 22, 2011

शहीद भगत सिंह को हमारा शत -शत नमन !

सहमी है नज़र, सहमा है मन, यूँ भी देखा है तकदीर बदलते हुए,
इक पल भी नहीं लगता, इंसान को हैवान बनते हुए....
इक आह सी निकलती है, जब कोई औरत जलाई जाती है,
कई - कई बार देखा है, दुपट्टे को कफ़न बनते हुए....
दर्द, दहशत, सब्र, हया, ये तो नारीत्व का हिस्सा हैं,
अक्सर सुनती हूँ लोगों को, यही प्रवचन कहते हुए....
कोई गवाह नहीं, न कोई हमख्याल है,
यूँ गुजरते हैं लोग, जैसे हर नज़र अनजान है...
क्यूँ भटकती है 'अनु', क्या तलाशती है नज़र,
कभी देखा है क्या, पत्थर को इंसान बनते हुए....
!!अनु!!

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