तेरे कदम पड़े हरदम आगे
तुझसे दूर पंथ बाधा भागे
तू बने सफलता ग्राही
रूक मत राही।
थक गए चरण, चुभते कंकर पग में
थकते झंझा, क्या रूक जाते मग में?
तू जन को उत्तरदाई,
रूक मत राही।
जीवन सागर निशिवासर, साँझ जिए जा
यदि शम्भु बना, असफलता गरल पिए जा
तू नीलकंठ होगा ही,
रूक मत राही।
स्पर्धा ही है पथ बाधा का नाम
विजयी कौन, कौन हारा, क्या काम ?
तू तो विजयी होगा ही,
रूक मत राही।
विपिन चतुर्वेदी
ऋषिकेश
No comments:
Post a Comment