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Wednesday, April 20, 2011

रूक मत राही

तेरे कदम पड़े हरदम आगे
तुझसे दूर पंथ बाधा भागे
तू बने सफलता ग्राही
रूक मत राही।

थक गए चरण, चुभते कंकर पग में
थकते झंझा, क्या रूक जाते मग में?
तू जन को उत्तरदाई,
रूक मत राही।

जीवन सागर निशिवासर, साँझ जिए जा
यदि शम्भु बना, असफलता गरल पिए जा
तू नीलकंठ होगा ही,
रूक मत राही।

स्पर्धा ही है पथ बाधा का नाम
विजयी कौन, कौन हारा, क्या काम ?
तू तो विजयी होगा ही,
रूक मत राही।


विपिन चतुर्वेदी
ऋषिकेश


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