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Wednesday, April 20, 2011

इन चोरों का क्या किया जाये ?


      • इन चोरों का क्या किया जाये ? 

        अभी फेस बुक ,  की सैर करते- करते अपनी एक कविता हाथ लगी . किन्ही कमल पाण्डेय ने इसे फेस बुक पर 9 अक्तूबर , 2010 को अपने नाम से पोस्ट किया है और प्रशंसा  करने वालों को बड़े गौरव के साथ धन्यवाद भी कहा है . दूसरे की रचना को अपने नाम से प्रकाशित करना घ्रणित ही नहीं निंदनीय भी है . इंटरनेट पर इसकी रोक के लिए सख्ती से कदम उठाने होंगे . मैं कमल की भर्त्सना करता हूँ . 

        देखिये मेरी मूल कविता ------का अंश 
        नेह - कविता : डा. नागेश पांडेय 'संजय ' 

        ओ, पंथ पथरीले

        ओ, पंथ पथरीले
        बहुत प्रिय हो मुझे तुम, 
        बहुत प्रिय!
        हाँ, उतने ही
        जितना प्रिय है मुझे 
        अपना स्नेह-भाजन,

        सच कहूँ तो -
        तुम्हारा पथरीला होना
        मुझे गर्वित करता है

        काश ! तुम कँटीले भी होते,
        कुछ सँकरे भी
        और थोड़ा ऊबड़-खाबड़ भी
        और... और थोड़ा 
        उतार-चढ़ाव भरे भी
        हाँ, हाँ ठीक 
        मेरे जीवन की तरह
        यदि तुम होते, ओ पंथ पथरीले।

        सच! अपने नेह भाजन के साथ
        तुम्हारा आश्रय लेकर
        मेरी अल्पकालिक सहयात्रा
        हो जाती कितनी सुखद।
        .........और अब चोर कमल का यह निंदनीय    कृत्य ----

  • Bahut priy ho mujhe tum!

    O panth pathreele......

    tumhara pathreela hona hi to mujhe garvit karta hai.

    kash! thoda utaar chadhaav bhare bhi hote tum,

    o panth pathreele..................................
    October 9, 2010 at 10:41am

      • Ekta Sanwal ‎:s
        October 9, 2010 at 10:51am

      • Vijay Shukla kya baat hai kamal ji..bahut khoob. dekhkar achchha laga....aap jeevan ke jhanjhavato'n se joojhne ke liye taiyar hain evam aur mushkilo'n ki demand kar rahe hain....
        October 9, 2010 at 10:51am ·  1 person

      • Kamal Pandey Isme maza to hota hi h. Kya kahte ho?
        October 9, 2010 at 11:00am

      • Vijay Shukla haan sirji jhanjhavaton se joojhna hi toh jeevan ka doosra naam hai.
        apki lekhni ki toh daad deni hogi...

        October 9, 2010 at 11:04am ·  1 person

      • Kamal Pandey Thnx yr..tumne samjha strugle ke maze ko
        October 9, 2010 at 11:06am
  • RECENT ACTIVITY
    यह कविता मेरी पुस्तक तुम्हारे लिए (2009)में संकलित है . पुस्तक की भूमिका पद्मश्री गोपाल दास नीरज जी ने लिखी है . प्रकाशक : सरस्वती प्रतीक संस्थान , 525ए / 624 , छ्परतला चौराहा , सेक्टर - ए , महानगर , लखनऊ ; 
    डा. नागेश पांडेय 'संजय' ,
    ई -मेल- dr.nagesh.pandey.sanjay@gmail.com

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

चोरों को माँ वीणापाणि का वरदान नहीं मिलता है!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

चोरों को माँ वीणापाणि का वरदान नहीं मिलता है!