आदरणीय नीरवजी के सान्निध्य में कल दूरदर्शन हॉउस में शब्द शताब्दी के उपलक्ष्य में आयोजित एक संगीतमय अखिल भारतीय कवि सम्मलेन देखा. बहुत बेहतरीन लगा. शायद वह सीधा प्रसारण नहीं प्रतीत हो रहा था. एक परदे के पीछे से दिखाया जा रहा था. अपनी मौलिकता से काफी दूर द्रष्टिगोचर हो रहा था. कुछ शब्दों की उच्चारण की दुरुहता भी नजर आयी जैसे सूरज को सुरज पढ़ता हुआ नजर आया. वैसे साज-सज्जा व कलात्मकरूप से बहुत सुन्दर था. दूरदर्शन की टीम ने काफी मेहनत की थी इसकी तैयारी में. एक अद्भुत द्रश्य की अनुभूति शब्द शताब्दी की बाकई एक पुरातन की कविता महकती सुगंध, कविता का परिपेक्ष्य, कविता करने की वास्तविक अनुभूति, कविता कविता है जो संगीतमय होती है वह गद्यमय कविता नहीं. सच्चाई यह है एक कविता होती है जिसमें शब्दों की संगीतमय स्वरलहरी गूंजती है , उसके आनंद में इतना रसमय हो जाता है कि उसका शब्दों से साक्षात् परमब्रह्म परमेश्वर का साक्षात्कार हो रहा हो. मेरे गुरु आदरणीय नीरवजी जो शब्दऋषि है, कवित्व महर्षि हैं और कविता के से परे शब्द पारिखी हैं, कविता के अर्थ और शब्द की महिमा बतायेंगे यदि आप उनसे पूछेंगे, श्री नीरवजी विश्वप्रख्यात शब्दऋषि हैं जिनके दर्शन के लिए लोग लालायित रहते हैं. उनका दर्शनमात्र ही गुरुत्व के घनत्व में स्थापित कर देता है. उन्हें मेरे पालागन.
इस अद्भुत कवि सम्मलेन के लिए मैं दूरदर्शन के सभी लोगों को बधाई देता हूँ. जय लोकमंगल.
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