नागेन्द्र पांडेयजी,
आजकल साहित्य में चोर कुछ ज्यादा ही सक्रिय हैं। और फेसबुकिये तो अक्सर वे हैं जो कभी किसी बुक के फेस पर नहीं आ पाते तो फेसबुक पर ही कुत्सित कार्य करते रहते हैं। मैं इस जघन्य अपराध की भर्त्सना करता हूं..
अभी फेस बुक , की सैर करते- करते अपनी एक कविता हाथ लगी . किन्ही कमल पाण्डेय ने इसे फेस बुक पर 9 अक्तूबर , 2010 को अपने नाम से पोस्ट किया है और प्रशंसा करने वालों को बड़े गौरव के साथ धन्यवाद भी कहा है . दूसरे की रचना को अपने नाम से प्रकाशित करना घ्रणित ही नहीं निंदनीय भी है . इंटरनेट पर इसकी रोक के लिए सख्ती से कदम उठाने होंगे . मैं कमल की भर्त्सना करता हूँ .
सुरेश नीरव
No comments:
Post a Comment