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Wednesday, April 20, 2011

जघन्य अपराध की भर्त्सना करता हूं..

नागेन्द्र पांडेयजी, 
आजकल साहित्य में चोर कुछ ज्यादा ही सक्रिय हैं। और फेसबुकिये तो अक्सर वे हैं जो कभी किसी बुक के फेस पर नहीं आ पाते तो फेसबुक पर ही कुत्सित कार्य करते रहते हैं। मैं इस जघन्य अपराध की भर्त्सना करता हूं..
अभी फेस बुक ,  की सैर करते- करते अपनी एक कविता हाथ लगी . किन्ही कमल पाण्डेय ने इसे फेस बुक पर 9 अक्तूबर , 2010 को अपने नाम से पोस्ट किया है और प्रशंसा  करने वालों को बड़े गौरव के साथ धन्यवाद भी कहा है . दूसरे की रचना को अपने नाम से प्रकाशित करना घ्रणित ही नहीं निंदनीय भी है . इंटरनेट पर इसकी रोक के लिए सख्ती से कदम उठाने होंगे . मैं कमल की भर्त्सना करता हूँ . 
सुरेश नीरव

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