पहले राजा ,अब कलमाड़ी........
पहले राजा, अब कलमाड़ी
घोटालों के चतुर खिलाड़ी
धरी रह गयी सब चतुराई
जब पब्लिक ने वाट लगाई
साथ मीडिया भी चढ़ बोला
सत्ता का सिंहासन डौला
जब घिरने की आई बारी
गिरगिट हो गए सत्ताधारी
चुप्पी साधी मौक़ा ताड़ा
संबंधों से पल्ला झाड़ा
पलट पीठ पर लात लगाई
हवालात की राह दिखाई
मात खा गए कुटिल खेल में
सोचो दोनों बैठ जेल में
-घनश्याम वशिष्ठ
0000000000000000000000000000000000000000000
नदी जब भी मचलती है, नया एक मोड़ लेती है,
अजब इसकी कहानी है, नया आगाज करती है!
कहीं आंसू, कहीं खुशियाँ, कहीं आफत, कहीं राहत,
किसी को दर्द देती है, कहीं खुशियाँ बरसती है!
अजब इन्सान की ताकत, नदी वो मोड़ देता है,
नदी जब मोड़ लेती है, तो किस्मत भी बदलती है,
कभी वो भूल जाता है, है कुछ, जो है नहीं बस में,
तो आकर वो सुनामी सी, घरोंदे तोड़ देती है!!
बहुत बांधा, बहुत मोड़ा, बहुत रस्ते बनाये हैं,
कहीं नहरों, कहीं झीलों से फसलें लहलहाएँ हैं,
मगर जब वो नदी इन्सान से रुख मोड़ लेती है,
ले वो आगोश में सब कुछ, रेत बस छोड़ देती है!!!
गौरव सिंह
00000000000000000000000000000000000000
अपने ख्वाबों को कहाँ तामीर करना है मुझे
तेरे सपनों का जहां तामीर करना है मुझे
हर बुलंदी छीन लेती है जमीं को इसलिए
अब जमीं पर आसमां तामीर करना है मुझे
दिल को उससे जो मिले थे जख्म सारे भर गए
फिर नया एक मेहरबां तामीर करना है मुझे
चार दिन की हो भले पर फूल सी हो जिन्दगी
खुशबुओं सी दास्तां तामीर करना है मुझे
बुलबुलें चहकें ख़ुशी से गुल खिले महके सबा
अब चमन में वो फिजां तामीर करना है मुझे
इस चमन के फूल सारे साजिशों में हैं शरीक
अब नया इक गुलसितां तामीर करना है मुझे।
पंकज अंगार
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पहले राजा, अब कलमाड़ी
घोटालों के चतुर खिलाड़ी
धरी रह गयी सब चतुराई
जब पब्लिक ने वाट लगाई
साथ मीडिया भी चढ़ बोला
सत्ता का सिंहासन डौला
जब घिरने की आई बारी
गिरगिट हो गए सत्ताधारी
चुप्पी साधी मौक़ा ताड़ा
संबंधों से पल्ला झाड़ा
पलट पीठ पर लात लगाई
हवालात की राह दिखाई
मात खा गए कुटिल खेल में
सोचो दोनों बैठ जेल में
-घनश्याम वशिष्ठ
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नदी जब भी मचलती है, नया एक मोड़ लेती है,
अजब इसकी कहानी है, नया आगाज करती है!
कहीं आंसू, कहीं खुशियाँ, कहीं आफत, कहीं राहत,
किसी को दर्द देती है, कहीं खुशियाँ बरसती है!
अजब इन्सान की ताकत, नदी वो मोड़ देता है,
नदी जब मोड़ लेती है, तो किस्मत भी बदलती है,
कभी वो भूल जाता है, है कुछ, जो है नहीं बस में,
तो आकर वो सुनामी सी, घरोंदे तोड़ देती है!!
बहुत बांधा, बहुत मोड़ा, बहुत रस्ते बनाये हैं,
कहीं नहरों, कहीं झीलों से फसलें लहलहाएँ हैं,
मगर जब वो नदी इन्सान से रुख मोड़ लेती है,
ले वो आगोश में सब कुछ, रेत बस छोड़ देती है!!!
गौरव सिंह
00000000000000000000000000000000000000
अपने ख्वाबों को कहाँ तामीर करना है मुझे
तेरे सपनों का जहां तामीर करना है मुझे
हर बुलंदी छीन लेती है जमीं को इसलिए
अब जमीं पर आसमां तामीर करना है मुझे
दिल को उससे जो मिले थे जख्म सारे भर गए
फिर नया एक मेहरबां तामीर करना है मुझे
चार दिन की हो भले पर फूल सी हो जिन्दगी
खुशबुओं सी दास्तां तामीर करना है मुझे
बुलबुलें चहकें ख़ुशी से गुल खिले महके सबा
अब चमन में वो फिजां तामीर करना है मुझे
इस चमन के फूल सारे साजिशों में हैं शरीक
अब नया इक गुलसितां तामीर करना है मुझे।
पंकज अंगार
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