Search This Blog

Friday, April 22, 2011

भग भजनीय भी है और सेवनीय भी।




  लोकमंगल को रोज बारह हजार लोग पढ़ रहे हैं
भगवान सिंह हंस के लिए जो भगवान भी हैं,
सिंह भी हैं और हंस भी
आखिर भगवान है क्या
आज के समय में ये प्रश्न पूछना बहुत आसान हो गया है कि क्या ईश्वर है। क्या आप भगवान को मानते हैं। आखिर भगवान है क्या। अब ये ऐसा सरल प्रश्न तो है नहीं कि इसका हर कोई जवाब दे सके। लेकिन ताज्जुब तो ये है कि जैसे प्रश्न पूछनेवाले वैसे ही इस प्रश्न का उत्तर देनेवाले। मैंने  इस प्रश्न का जवाब देने की कभी जुर्रत नहीं की। और कर भी नहीं सकता। लेकिन भगवान आखिर है क्या इस शब्द की पड़ताल जरूर करने की कोशिश की है और उसे आप तक भी पहुंचा रहा हूं। व्याकरण के अनुसार भग शब्द भज् धातु में घ प्रत्यय के मिलने से बनता है। इसलिए भग भजनीय भी है और सेवनीय भी। भज्यते इति, भज् सेवायाम। अब यह भग है क्या। तो शास्त्रों में जिन बारह सूर्यों का उल्लेख है उसमें से एक सूर्य को भग कहते है। भग का एक अर्थ भाग्य भी है। इसी भग से सौभाग्य बना है। और सौभाग्यवती भी। भग का एक अर्थ शिव भी है। देवताओं में भगवान सिर्फ शिव ही हैं। और भगवती सिर्फ पार्वती का ही संबोधन है। भग चंद्रमा को भी कहते हैं। भग का अर्थ संपन्नता भी है और प्रसन्नता भी। भग का अर्थ नैतिकता,सदगुण और धर्म भावना भी है। और-तो और भग का अर्थ श्रेष्ठता भी है। जो भगवत्ता को प्राप्त करते हैं वही श्रेष्ठ-जन हैं। भग को कीर्ति भी कहा गया है। जो सुभग हैं,यानी जिनकी निर्मल कीर्ति चारो ओर फैलती हो वही महान हैं। भग जीवन की  सुखद नियति है। भग लावण्य है और सौंदर्य भी। भग ही प्रेम है और भग ही प्रेममय क्रीड़ा भी। भग ज्ञान है,उत्कर्ष है, तप है, धैर्य है, और जो धन भी वह भी भग है। भग वैराग्य भी है। और सर्वशक्तिमत्ता भी। भग सामर्थ्य भी है और माहात्म्य भी।
जिन्हें भग शब्द का अर्थ विस्तार नहीं मालुम होता है वे भग का अर्थ सिर्फ स्त्री चिन्ह के रूप में ही लेते हैं। यदि वह ऐसा समझते हैं तो उनकी जानकारी के लिए यह बताना जरूरी है कि भग पुरुषांग भी है। और ओठ को भी भग कहते हैं। भग ही प्रकृति है। भग रतिगृह भी है और भग स्मरागार भी। कुल मिलाकर भग ही सृष्टि के निर्माण का मूलाधार है। और सृष्टि का संचालक भी। तो जिसने भग के इतने व्यापक अर्थ विस्तार को समग्रता से अपने में समाहित कर लिया हो वही भगवान है। जो भग के सीमित अर्थ को ही लेकर भग लेते हैं वे लग-भग भगोड़े हैं। वे क्या जाने, भगवान की भगवत्ता।
पंडित सुरेश नीरव

No comments: