आदरणीय श्री बी.एल. गौड़जी, सादर प्रणाम. आपको बहुत-बहुत बधाई भ्रष्टाचार पर लिखित बेहतरीन आलेख के लिए. आपकी उम्मीद को परमपिता परमेश्वर पूर्ण करे कि घोटालों का युग की समाप्ति होगी. पुनः आपको सादर नमन.
पूनम दहियाजी आपकी कविता बहुत अच्छी लगी. ये पंक्तियाँ बेहद पसंद आयीं -
खरीददार नहीं कोई, ये भी जानती हूँ मैं.
मैं खो के भी सब कुछ लुटाने को तैयार बैठी हूँ.
क्या व्यंग है इन पंक्तियों में. आपको बहुत -बहुत बधाई.
घनश्याम वशिष्ठजी आपको बेहतरीन कविता के बधाई. आपकी निम्न पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं-
मगर जब वो नदी इंसान से रुख मोड़ लेती है
लो वो आगोश में सब कुछ ret bs छोड़ देती है.
९०१३४५६९४९
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