बृहद भरत चरित्र महाकाव्य के कुछ सदप्रसंग आप हेतु---
दशरथ अन्तः भाव धर, मंत्रि परिषद् बुलाय.
कुलगुरु वामदेव आदि, तुरंत लिए बिठाय.
राजा दशरथ ने अन्तः में विचार किया और मंत्रिपरिषद् बुलाव ली और कुलगुरु वशिष्ठ, वामदेव आदि सब तुरंत विचार-विमर्श हेतु बिठाल लिए.
दशरथ ने बातहि समझाई. सबने सुनी कर्णहि लगाईं.
धन्य धन्य राजा! यह आशा. हम सर्व की यही अभिलाषा.
राजा दशरथ ने अपनी बात मंत्रिपरिषद् को बतायी. सभी ने बड़े ध्यानपूर्वक राजा की बात सुनी. सबने राजा को धन्य-धन्य कहा कि हमें हे राजन!आपसे यही अभिलाषा थी. हम सब की यही इच्छा है.
अब स्ववय साठ सहस्र वर्षा. सौंप राज्य ,विश्राम सहर्षा.
मम पूर्वज सत्यमार्ग गामी. हों चलता सहर्ष पथ थामी.
अब मेरी आयु साठ हजार वर्ष की हो गयी है. राज्य सौंपकर मैं सहर्ष विश्राम चाहता हूँ. मेरे पूर्वज सत्यमार्ग पर चलने वाले थे.
धर्महि संरक्षण निर्वाहा. अब यह भार राम को चाहा.
विज्ञ अनुमति प्रजाहित चाहूँ. जग में मैं विश्राम सराहूँ.
धर्म का संरक्षण मैंने पूर्ण निर्वाह किया है. अब यह भार राम को देना चाहता हूँ. आप सब विद्वानों की प्रजाहित हेतु अनुमति चाहता हूँ जिससे मैं जगती में विश्राम प्राप्त कर लूं.
प्रस्तुति - योगेश विकास
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