Search This Blog

Sunday, April 17, 2011

जिसे पोइट समझते हो ,उसे लिखना नहीं आता

उसे कविता नहीं आती वो ख़ुद को किंग कहता है
चुराता है मेरी ग़ज़लें , मेरे नज़दीक रहता है
ज़माना उसको सुनता है ,ग़लतफ़हमी उसे ये है
मेरी ग़ज़लें चुराईं जो ,ज़माना उनमें बहता है
- - नित्यानंद `तुषार`

*
नयी पीढी को धोखा दे के कुछ आगे वो बढ़ता है
कई चमचों के दम पर वो कई मंचों पे चढ़ता है
जिसे पोइट समझते हो ,उसे लिखना नहीं आता
हमारे शे`र बेशर्मी से मंचों पर वो पढता है
- - नित्यानंद `तुषार `

No comments: