बार बार कहता हूँ मन के द्वंदों से
पल भर को तो रुको मुझे कुछ कहना है
मान कहा मन का मैं जीवन भर भटका
समझ नीर की लहर रेत पर मैं अटका
देख छपे पदचिन्ह चला पीछे पीछे
लगा चल रहा संग कोई अखियाँ मीचे
यह मेरी अनुभूति मात्र कल्पना नहीं
विगत काल की किसी याद का गहना है
इसने मानी बात न खूब करी मन की
रहा सोचता मैं कब बात करूं तन की
पलक झपकते ढला सूर्य और शाम हुई
देखें अब ये धुनका कब तक धुनें रुई
अब झीनीं सी फटी चदरिया क्या सीना
ओढ़ इसे अब धूप ताप सब सहना है
तन तो सोया पर मन मीलों मील चला
चखा अमरफल इसने यौवन नहीं ढला
अब ऐसे मित्र कहाँ जो देखें बस मन को
है यह जग की रीत सभी देखें तन को
लाख करूं मैं जतन न छूटे संग इसका
गठबंधन का धर्म इसी संग रहना है
बार बार कहता हूँ मन के द्वंदों से
पल भर को तो रुको मुझे कुछ कहना है
बी एल गौड़
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