परिवार बच्चे की प्रथम पाठशाला है जहाँ उसको जीने के जीवंत संस्कार मिलते हैं. बच्चे को छवि या गुण उसके परिवार से मिलते हैं . प्रश्न उठता है कि वहाँ उसका कौन गुरु या शिक्षक है जो इतनी शाश्वत, पवित्र, पावन, पीयूष और सतसंस्कारों से ओत-प्रोत शिक्षा देता है. वह है बच्चे की आदि गुरु-माँ जो अनुपम है. वह माँ बच्चे को कुम्हार के घड़े की तरह ढ़ालती है. उस माँ की तुलना नहीं. वह एक साफ़ मंजा परिवार बनाती है. इसलिए तो लोग कहते हैं कि उसका परिवार कितना अच्छा है. वह माँ बच्चे को जन्म देने के बाद ही नहीं बल्कि जन्म से पूर्व भी अद्भुत पाठशाला में रखकर सर्वगुण संपन्न करा देती है बशर्ते बच्चा उस माँ की शिक्षा पर ध्यान दे या उस अमुक पाठशाला में सोये नहीं. यह शिक्षकमाँकी अध्यापन कसौटी है. इसमें कोई आश्चर्यनहीं. अभिमन्यु इसका एकजीताजगता उदाहरण है. उस माँ की पाठशाला में ही शिक्षा ग्रहण करके बिस्मल, आजाद भगत सिंह, सुभाष चन्द बोस और महात्मा गाँधी जैसे अमर सपूत हुए हुए जो अपनी के लिए कोत्बान हो गए. फिर उस माँ. शिक्षक और आदि गुरु को कैसे भूल सकते हैं. उस माँ के चरणों में मैं माथा टेककर शतशत नमन करता हूँ. जय गुरवे नमः. जय लोकमंगल.
भगवन सिंह हंस
९०१३४५६९४९
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